हफ्ते भर की आपाधापी के बाद
शनिवार की सुबह
उंघते हुए...
खुली आँखों से
मैंने एक सपना देखा
सपना एक बेहतर कल का
आने वाले समय का
जिसमे एक शांति थी
ना शोर था
ना चिल्लम-चिल्ली थी
ना कोई आतंकवाद,
ना कोई क्रोध और हिंसा का वार
बस एक अपना पन था
आंख खुली तो पाया
बिस्तर पर पड़े थे...
और कानो में शोर था...
उठो आठ बज गए...
कितना सोओगे...
कितना काम पड़ा है...
वह सब कब करोगे...
उठ गए..
और फिर सोचा..
कभी ऐसा भी दिन आएगा
जब अपना सपना सच करूँगा..
एक दिन आएगा
जब अपने लिए जियूँगा... अपने लिए जियूँगा...
सो भैया देखते हैं वह दिन कब आएगा............. | फ़िलहाल तो उठ जाओ और काम पे लग जाओ भाई..........|
-देव
6 टिप्पणियां:
एक और नया दिन, एक और नया कार्य
वह दिन जब आएगा तो नहीं भायेगा ....
वो सुबह कभी तो आएगी :)
उस आने वाली सुबह के लिए शुभकामनाएं ...
सपने जो हैं अधूरे
एक दिन होंगे पूरे...
वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा
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