शुक्रवार, 20 जनवरी 2012

शनिवार की सुबह.... देव बाबा की कविता....


हफ्ते भर की आपाधापी के बाद
शनिवार की सुबह
उंघते हुए...
खुली आँखों से
मैंने एक सपना देखा
सपना एक बेहतर कल का
आने वाले समय का

जिसमे एक शांति थी
ना शोर था
ना चिल्लम-चिल्ली थी
ना कोई आतंकवाद,
ना कोई क्रोध और हिंसा का वार
बस एक अपना पन था

आंख खुली तो पाया
बिस्तर पर पड़े थे...
और कानो में शोर था...
उठो आठ बज गए...
कितना सोओगे...
कितना काम पड़ा है...
वह सब कब करोगे...

उठ गए..
और फिर सोचा..
कभी ऐसा भी दिन आएगा
जब अपना सपना सच करूँगा..
एक दिन आएगा
जब अपने लिए जियूँगा... अपने लिए जियूँगा...

सो भैया देखते हैं वह दिन कब आएगा............. | फ़िलहाल तो उठ जाओ और काम पे लग जाओ भाई..........|

-देव

6 टिप्‍पणियां:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

एक और नया दिन, एक और नया कार्य

रश्मि प्रभा... ने कहा…

वह दिन जब आएगा तो नहीं भायेगा ....

शिवम् मिश्रा ने कहा…

वो सुबह कभी तो आएगी :)

सदा ने कहा…

उस आने वाली सुबह के लिए शुभकामनाएं ...

Sumit Pratap Singh ने कहा…

सपने जो हैं अधूरे
एक दिन होंगे पूरे...

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह!!!वाह!!! क्या कहने, बेहद उम्दा