गुरुवार, 29 अप्रैल 2010

ढोल गवार शुद्र पशु नारी या फिर यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता...

आज तो हमारे प्रिय मित्र नीरज भाई में अपने ऑरकुट में अपना संदेश लिखा... ढोल गवार शुद्र पशु नारी सकल ताड़ना के अधिकारी... उत्तर में मैंने लिखा यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता...
अब साहब दोनों में से किसी भी दल में जाइए उलटी ही पड़ेगी | अब साहब ढोल को बजाइए, ढोल का काम है बजना... जितनी जोर से ढोल पीटेंगे उतनी ही जोर से आवाज आएगी.... बाकी पशु, शुद्र और नारी के बारे में बोलने वाला मैं कौन.... और इनको तारने वाला भी मैं कौन.... इन्फेक्ट आम आदमी को तारण-हार की क्या ज़रूरत है यार.... वह तो पहले ही कुकुर का जीवन व्यतीत कर ही रहा है.... परन्तु मित्रों तुलसी दास जी ने जब इस चौपाई को लिखा उस समय की बात और थी शायद तुलसी दास जी का अपना कुछ अनुभव रहा होगा | रामायण में जो तुलसीदास जी नारी को तारने की बात कर गए वहीँ रामायण में केवल सीता ही नहीं बल्कि कई नारियों के बारे में भी जगत को बतला गये । अब रामायण टटोल कर देखिए नारी के किन किन रुपों को पा जायेंगे, सीता, कौशल्या, कैकई, सुमित्रा, शबरी, अहिल्या, त्रिजटा, सती अनुसुईया, मंदोदरी, सुलोचना जैसे रुप हैं.... मंथरा और शुर्पनखा जैसे रुप भी हैं । दर-असल रामायण मनुष्य के समस्त रुपों को दर्शाता एक सम्पूर्ण काव्य है । रामायण में सीता का त्याग है तो उर्मिला का त्याग भी तो है... और सुलोचना का सतीत्व और त्याग किसी से क्या कम है ।

हिंदी के मूर्धन्य समालोचक डा. रामविलास शर्मा के अनुसार “ढोल गंवार...” वाला अंश भी रामचरितमानस में प्रक्षिप्त है। वे कहते हैं -
“ढोल गंवार वाली पंक्ति राम और समुद्र की बातचीत में आई है जहां समुद्र जल होने के नाते अपने को जड़ कहता है और इस नियम की तरफ इशारा करता है कि जड़-प्रकृति को चेतन ब्रह्म ही संचालित करता है। वहां एकदम अप्रासंगिक ढंग से यह ढोल गंवार शूद्र वाली पंक्ति आ जाती है। निस्संदेह यह उन लोगों की करामात है जो यह मानने के लिए तैयार नहीं थे कि नारी पराधीन है और उसे स्वप्न में भी सुख नहीं है।"

वे आगे कहते हैं -

“सामंती व्यवस्था में स्त्रियों के लिए एक धर्म है तो पुरुषों के लिए दूसरा है। तुलसी के रामराज्य में दोनों के लिए एक ही नियम है:
“एक नारिब्रतरत सब झारी। ते मन बच क्रम पतिहितकारी।“

अर्थात, पुरुष के विशेषाधिकारों को न मानकर तुलसीदास ने दोनों को समान रूप से एक ही व्रत पालने का आदेश दिया है। लेकिन विशेषाधिकारवालों ने ढोल गँवार आदि जैसी पंक्तियां तो गढ लीं, और एक नारीव्रतरत होने की बात चुपचाप पी गए। दर-असल मनुष्य वृत्ति ही ऐसी है, धार्मिक ग्रंथो और काव्यों की व्याख्या अपने अपने हिसाब से कर लेते हैं | रामायण की चौपाइयां एक लाइन में कहेंगे तो अर्थ का अनर्थ हो जायेगा... उसको समझने के लिए पूरी चौपाई पढना ज़रूरी है | एक बार मुझे याद है मैं महानगरी से बनारस से मुम्बई आ रहा था और मेरे ही कूपे में एक बाबा जी रामायण पर प्रवचन दे रहे थे, उन्होंने बाल काण्ड से शुरू किया और फिर सुन्दर काण्ड तक एक ही सांस में पहुच गए... पूरा डिब्बा तल्लीनता से उनकी कथा में मगन था... मैं जब कभी भी बाहर रहता हूँ या लम्बी यात्रा पर रहता हूँ तो मेरे पास रामायण ज़रूर रहती है उस दिन भी थी.... रामायण की कथा के बीचो बीच किसी ने मायावती के बारे में कुछ कह दिया की उसने इतना पैसा खर्चा किया और उसको किसी ने कुछ नहीं कहा..... बाबा जी ने उसकी व्याख्या की समरथ के नहीं दोष गोसाईं.... बस यहीं उन बाबा जी से गलती हो गयी.... अब देव बाबा की बारी थी.... मैंने बाबा जी को लपेट लिया अच्छे से.... मैंने बाबा जी से बोला प्रभु पूरी चौपाई पढ़ें.... और फिर मुझे उत्तर दें.... बाबा जी को पूरी चौपाई ध्यान ही नहीं आ रही थी तो मैंने उनको सही किया की तुलसी दास जी ने पूरी चौपाई कुछ इस प्रकार से लिखी है की

समरथ के नहीं दोष गोसाई, रबि पावक सुरसरि की नाई

अब इसका अर्थ बदल गया या नहीं.... तुलसी दास जी की असल व्याख्या कुछ ऐसी है.... कौन समर्थ है.... रवि अर्थात सूर्य, पावक अर्थात अग्नि और सुरसरी अर्थात माँ गंगा के किसी भी प्रकार के दोष... दोष नहीं... वह किसी ना किसी रूप में कल्याण कारी ही हैं|

वैसे यहाँ इस प्रकार के प्रवचन को देने के पीछे मेरा अभिप्राय केवल इतना मात्र था की रामायण के अर्थो को अर्थ ही रहने दिया जाए.... केवल कुछ अंशों को देखकर और उनकी अपने सुविधा के हिसाब से अंकित कर लेना शायद गलत होगा.... असली ज़रूरत है तो रामायण के आदर्शों को समझने की, रामायण के दर्शन को समझने की और शायद राम को समझने की..... राम तो देश के कण कण में हैं.... राम तो हर तन में हर मन में हैं.... राम कोई एक धर्म विशेष के नहीं हैं... राम व्यक्ति मात्र के लिए आदर्श पुरुष हैं और उनका अतीव पावन रूप रामचरितमानस में बहुत अच्छे रूप में अंकित है.... बस तो फिर बोलो जय राम जी की....

-देव

19 टिप्‍पणियां:

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

जिसने रामायण को समझ लिया उसने पूरा जहां समझ लिया..

विवेक रस्तोगी ने कहा…

जय राम जी की....

संगीता पुरी ने कहा…

रामायण के अर्थो को अर्थ ही रहने दिया जाए.... केवल कुछ अंशों को देखकर और उनकी अपने सुविधा के हिसाब से अंकित कर लेना शायद गलत होगा.... असली ज़रूरत है तो रामायण के आदर्शों को समझने की, रामायण के दर्शन को समझने की और शायद राम को समझने की.....

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर व्याख्या व मंथन किया है आभार।

राजा कुमारेन्द्र सिंह सेंगर ने कहा…

भैया ये वो देश है जहां राम को काल्पनिक भी माना जाता है और उन्हीं के द्वारा राम शम्बूक वध की चर्चा की जाती है.
ये वही देश है जहाँ हलफनामा दिया जाता है कि राम नहीं थे और विजयादशमी को उन्हीं की नेता के द्वारा राम की आरती उतारी जाती है.
ये वही देश है जहां सीता की अग्नि परीक्षा दिखती है, सुमित्रा का तप नहीं दीखता.
राम की ज्यादतियां दिखतीं है....चारों भाइयों का प्यार नहीं दीखता.
अब क्या कहें....सकल ताड़ना के अधिकारी...................
वैसे अब वो दिन आने वाला है जब इस चौपाई की असलियत को जानने के लिए हस्तलिखित प्रति की जरूरत होगी. वर्ना...पुरुष अपना राग अलापेंगे और महिलाएं अपना..... और कुछ इन्हीं के बीच मंजीरे बजायेंगे.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड

अनूप शुक्ल ने कहा…

मैंने भी इस पर कभी लिखा था-
http://hindini.com/fursatiya/archives/63

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बात तो पते की काहे हो भैया पर कितने समझेगे ??
राम की फ़िक्र तो सिर्फ़ बीजेपी वालों को है ! आम जनता तो अपना पेट पालने में लगी रहती है !

Arvind Mishra ने कहा…

राम चरित मानस जीवन दर्शन है -पूरा का पूरा एक जीवन काव्य !

PRATUL ने कहा…

"ढोल गवार शुद्र पशु नारी सकल ताड़न के अधिकारी"
आपका लेख जो पढ़े, विचारों की श्रृंखला शुरू हो जाए,
रामचरितमानस में "ढोल, गंवार, शूद्र, पशु, और नारी" इनके ताडन की बात कही गयी है और यहाँ 'ताडन' शब्द का अर्थ 'समझने' से है.
— पहले के जमाने में jab ढोल ही सन्देश का माध्यम था, ढोल का भांति-भांति से बजना सुनने वालों को महसूस कराता था कि किस तरह का सन्देश मिलने वाला है 'शोक अथवा ख़ुशी अथवा अन्य महत्व का' समाचार. ढोलची अपनी उतार-चड़ाव भरी ढोल की थापों से यह कौशल व्यक्त करते थे. जिसे बिना 'ताड़न' के [मतलब 'समझे'] नहीं जाना जा सकता था.
— इसी तरह 'गँवार' भी ताड़न का अधिकारी है. क्योंकि उसके पास ऐसी स्पष्ट भाषा नहीं जिससे उसके भावों को to the point गृहण किया जा सके. वह अपनी गँवारीयत [अल्पज्ञता] के कारण अपने मनोभावों को सही-सही व्यक्त नहीं कर पाता.
— इसी तरह शूद्र भी अपने सेवा [शूद्र] कार्य करने के कारण से संकोच करता है उसकी हिचकिचाहट को बिना समझे व्यवहार नहीं करना चाहिए.
— 'पशु' क्योंकि पशु है उसके पास केवल स्वर है भाषा नहीं, ना ही व्याकरण, जिससे उसकी जरूरतों का पता लगाया जा सके. इस कारण वह भी समझे jaane का अधिकारी है.
— रही 'नारी' [अच्छी-बुरी दोनों प्रकार की], नारी लज्जा का पर्याय मानी जाती थी उस समय उसकी अभिव्यक्ति में लज्जा और संकोच उसके मनोभावों को समझने में बाधक थे. अतः वह भी ताड़न की अधिकारी थी. बुरी नारियों की थाह पाना मुश्किल रहा है. जिस तरह श्री राम को सुपर्न्खां को समझने में समय लगा. अतः वह भी समझने की अधिकारिणी हैं.

यहाँ मारने से कतई अर्थ नहीं हैं. क्यों परेशान होते हैं? देव जी, अब बताइये कि आप मुझे 'ताड़' पाए या नहीं.

एक और बात, एक वृक्ष का नाम 'ताड़' है. उसपर चड़ना आसान नहीं. ताड़ी [एक पेय दृव्य] बनाने वाले ऊपर तक पहुँच कर बर्तन बाँधकर आते हैं फिर उस दृव्य को धीरे-धीरे निकलने देते हैं, ताड़ी प्राप्त करने के लिए वे भी काफी श्रम करते हैं, प्रतीक्षा करते हैं, तब जाकर अर्थ [रस] इकट्ठा कर पाते हैं.
संस्कृत के और देशज के काफी शब्दों की उत्पत्ति इसी तरह हुई है. आप भाषा-विज्ञान पढेंगे तो मालूम होगा.

अर्थ का अनर्थ पहले भी होता रहा है आज की ही बात नहीं.
आपकी अब अन्य रचनाओं को पड़ने का सोचा है. इसलिए मिलते हैं एक ब्रेक के बाद....

ZEAL ने कहा…

.
यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवता...

Hope people will understand this some day !

and,
Instead of saying.....बस तो फिर बोलो जय राम जी की.......I will prefer to say--

Jai Siya-Ram
Jai Radhey-Krishn
Jai Umanath

@ Pratul ji-

Beautiful explanation Sir . Thanks.

Divya

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

धन्यवाद आपने हमारी आँखें खोल दी.
हम बता नहीं सकते कि हम आपके कितने कृतज्ञ हुए.
आपने हज़ारों-लाखों भटके लोगों को सही बात बताकर उन्हें भटकने से बचाया और कई भटके हुए ( जैसे मुझको ) लोगों को सही मार्ग का दर्शन कराया.

Saleem Khan ने कहा…

nice

बेनामी ने कहा…

VERY GOOD BHAI SAAB

Dev K Jha ने कहा…

ठीक ही कहा, प्रतुल जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद... दिव्या आपने तो सही अर्थ दे दिया...

वाकई में जय सिया राम
जय राधे कृष्ण और जय उमानाथ... जय गौरी शंकर....

मेरी पोस्ट पूरी हो गयी आप लोगो के अनमोल विचारों से....

ZEAL ने कहा…

@ Dev ji-

Punah badhaii..agli post ka intezaar rahega

मानवधर्म ने कहा…



‘‘बंदउं संत असज्जन चरना" संन्त तुलसी दास जी रामचरित मानस की रचना करते समय ।सब की बन्दना करते है । यहा तक की जो अभी जन्म आगे जन्म लेने वाले है । उन्हो ने लिखा है । नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद,रामायणे निगदितं क्वचिद्न्यतोSपि।स्वान्त:सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमात्नोति,, आत्म सुख के लिए लिख रहा है ।उस सुख से सम्पूर्ण मानव समाज सुखानुभूति करता हो । जो कह रहा हो वेद पुराणो का निचोण लिख रहा हू । पुराणो का निचोण क्या है ? अष्टादश पुराणेसु व्याशस्य वचनम द्वयम॥,परोपकारय पूण्याय । पर पीणनम्॥ वह सन्त कहे गा ढोल को बजाओ नही पीटो ,अग़्यानी को मारो ,शूद्र को ठोको , पसू को दंणित करो ,नारी को प्रताडित करो । कुछ महान सन्त तो यहा तक कह जाते है ।कि तुलसी दासजी से भूल हो गयी । गावो मे आमतोर पर गाहे बगाहे अनेक रूप मे इस " ताणन" सब्द का प्रयोग होता रहता है । यथा फ़लाने मेरे विरुद्ध सड्यन्त्र तो रचा था ।पर उनके इरादे को ताड गया था । यहा पर ताडना का मतलब जानना , समझना अहसासकरना या अनुभूति करना से है ।

p.r.pandey ने कहा…

‘‘बंदउं संत असज्जन चरना" संन्त तुलसी दास जी रामचरित मानस की रचना करते समय ।सब की बन्दना करते है । यहा तक की जो अभी जन्म आगे जन्म लेने वाले है । उन्हो ने लिखा है । नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद,रामायणे निगदितं क्वचिद्न्यतोSपि।स्वान्त:सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा-भाषानिबन्धमतिमञ्जुलमात्नोति,, आत्म सुख के लिए लिख रहा है ।उस सुख से सम्पूर्ण मानव समाज सुखानुभूति करता हो । जो कह रहा हो वेद पुराणो का निचोण लिख रहा हू । पुराणो का निचोण क्या है ? अष्टादश पुराणेसु व्याशस्य वचनम द्वयम॥,परोपकारय पूण्याय । पर पीणनम्॥ वह सन्त कहे गा ढोल को बजाओ नही पीटो ,अग़्यानी को मारो ,शूद्र को ठोको , पसू को दंणित करो ,नारी को प्रताडित करो । कुछ महान सन्त तो यहा तक कह जाते है ।कि तुलसी दासजी से भूल हो गयी । गावो मे आमतोर पर गाहे बगाहे अनेक रूप मे इस " ताणन" सब्द का प्रयोग होता रहता है । यथा फ़लाने मेरे विरुद्ध सड्यन्त्र तो रचा था ।पर उनके इरादे को ताड गया था । यहा पर ताडना का मतलब जानना , समझना अहसासकरना या अनुभूति करना से है ।

Prabhat Sati प्रभात सती देहरादून ने कहा…

माफ कीजियेगा मैं उक्त व्याख्या से सहमत हीनही हूं।
तुलसीदास जी की मूल राम चरित मानस में जो चौपाई लिखी हौ वह है
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी एही सब ताडन के अधिकारी।

संस्कृत में ताडन शब्द का अर्थ होता है शिक्षा।
दरसल तुलसीदास जी ने रामचरितमानस जब लिखी थी उस वक़्त मुगलकाल था और उसमे स्त्री को पढ़ाया नही जाता था। ढोल का अर्थ यहाँ ढोल से नही अपितु ढोल बजाने वाले से है। इसी प्रकार शूद्र अर्थात सेवक को भी पढ़ा लिखा होना चाहिए। शिक्षाहीन कोई भी व्यक्ति भी पशु होता है।

ताड़ना शब्द का अर्थ प्रताड़ित करने से है परंतु ध्यान रखिये यहाँ ताडन शब्द लिखा है।

Unknown ने कहा…

रामचरितमानस की मूल प्रति में क्या शूद्र के स्थान पर छुद्र लिखा गया है