रविवार, 24 मई 2015

अपना कौन पराया कौन...

मित्रों मानवीय संवेदनाएं किसी भी रूप में, किसी भी जाति में एक सामान ही होती हैं, यह धर्म, देश और समाज से परे होती हैं। पिछले साल जब हम मुंबई से बनारस, सड़क मार्ग से गए थे तब का एक वाक्या आपको सुनाता हूँ। उस समय हमारी यात्रा का तीसरा दिन था और हम आगरा से बनारस के रस्ते में थे, कानपुर, फतेहपुर पार कर चुके थे और इलाहाबाद से कुछ पहले ग्रैंड ट्रैंक रोड पर चाय पीने रुके… उस चाय की गुमटी, अदरक वाली चाय और उनका आथित्य सत्कार। मुझे आज भी याद है मानो यह कल ही की बात हो.... 


उन्होंने जब यह जाना की हम लोग मुंबई से कार से बनारस जा रहे हैं तब उन्होंने हमसे बहुत सी बातें की, हमारे अनुभव पूछे। उत्तर प्रदेश की बातें हुई और यहाँ से मुंबई भागते हुए लोगों और पलायन की बातें होती रही। मैं और दुकान के मालिक बात करते रहे और वहाँ आदि महाराज ने एक अलग ही नाता जोड़ लिया था।  माताजी पूजा के लिए पेड़े बना रहीं थी और आदि बाबा उनकी मदद कर रहे थे। पूरी तन्मयता के साथ आदि कढ़ाई में हाथ घुमा रहे थे और माताजी और उनकी पोती आदि को निहार रहे थे। कुछ चित्र देखिए: 





आदि की इन हरकतों से माताजी ने बड़े ही भोलेपन से कहा, रे तू कौन है, मन को मोहने वाला कोई मायावी तो नहीं है न। हमने कहाँ यह पूजा के लिए बन रहे पेड़े हैं सो मैं इसको उठा लेता हूँ, उन्होंने मना किया और कहा आज जब देवता खुद ही आ गया है भोग लगाने तो मैं उसे क्यों उठाउं भैया। मैं निरुत्तर हो गया, आदि ने पेड़ा खाया और पानी पिया और सबको प्यार किया। रात हो रही थी और कोई ढाई सौ किमी की दूरी बाकी थी सो हमने उनसे विदा लेना चाहा। यह किसी अपने से बिछड़ने जैसा और न जाने क्यों बहुत ही अजीब लग रहा था। 

इस संसार में अपना पराया जैसा कुछ नहीं है, कहीं अपने वह तकलीफ दे जाते हैं जो कोई दुश्मन भी न दे और वहीँ पराये इतना कुछ दे जाते हैं जो समेटने के लिए आँचल छोटा पड़ जाता है। 

इस स्थान का ठीक ठीक पता तो नहीं लेकिन इन चित्रों के मोबाइल से लिए जाने के कारण इनका कोऑर्डिनटेस आ गए (25.823330555555554,81.0293638888889) यदि आप कभी इस रास्ते से गुज़रे तो इनसे जरूर मिलियेगा। 

3 टिप्‍पणियां:

वाणी गीत ने कहा…

हर दिन की नकारात्मक खबरों के बीच इसे पढना सुखद नरम अहसास दे रहा!
बालगोपाल खुद ही भोग बनाने आ गये और क्या चाहिये !
अच्छी पोस्ट!

Archana Chaoji ने कहा…

कितनी सुखद है ये याद ॥ आदि जब बड़ा होगा ..पेड़े खाने का मन करेगा उसका

अरुण चन्द्र रॉय ने कहा…

rochak