शनिवार, 23 मई 2015

अमेरिका, भोजपुरी और मराठी :)

आज बाबा रणछोड़दास चाँचड की एक बात याद आई.... दोस्त फेल हो जाए तो बुरा लगता है लेकिन यदि दोस्त फर्स्ट आ जाए तो ज्यादा बुरा लगता है। और यह वाकई में सच है, कोई दो राय नहीं। मूड चेंज किया जाए.... अगर यहाँ पर भी भोजपुरी और मराठी बोलने लगें तो फिर क्या होगा? अंग्रेज गोरे भोजपुरी में बात करेंगे... कंप्यूटर भी सारे आप्शन भोजपुरी में देगा.... कितना मजा आएगा जब हैंग होने से पहले कंप्यूटर कहेगा.... रे तू पगलाये गइल ह का, जान लेब का हमार... फिर.... ले दद्दा हम त मर गैनी रे.. हमरा के फेर सा चालू करा हो बकलेल... यही बात कौनो अंग्रेज कहेगा तो कैसा लगेगा... भारत को चाहिए की माइक्रोसॉफ्ट विन्डोज़( अत्यंत मुलायम खिड़कियां) का भोजपुरी वर्ज़न लाने को कहा जाए.... फिर देखिए कइसा गजब होता है दुनिया में। अगर ई हो गया न, तब दुनिया का शक्ले बदल जाएगा। अभी पुड़िया खाके चौराहे पर थूकने और बकलेल कहलाने वाला सब एक्के दिन में ओबामा को फेल कर देगा। छ महीना में एक रुपैया में साठ डॉलर, अमरीका कटोरा लेके नितिन गडकरी के बंगले के आगे मिलेगा। अरे मुस्कियाए नहीं.... न मानो तो करके देखो तो, न हो ई सच तो हमरा नाम बदल के राहुल गांधी रख देना.... रे तोरी बक बक में स्टेसन आ गया रे....

वईसे अगर यहां मराठी में अनाउंसमेंट हो तो क्या कहेगा बुधियार सब? फिलहाल पुढील स्टेसन न्यूपोर्ट, अगला स्टेसन न्यूपोर्ट, नेक्स्ट स्टेसन न्यूपोर्ट.... भोजपुरी में हुआ तो, न्यूपोर्ट आए गइल हौ, दरवज्वा से दूर रहा नैय ता कूचा जइब। जब गड़िया पूरा रुक जाइ तब उतरा।

नोट: (आज सुबह ऑफिस जाते समय ट्रेन में बैठे ठाले लिखी हुई यह लाइनें मात्र व्यंग्य के लिए )

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