शुक्रवार, 13 मार्च 2015

बक बक शुरू

अमेरिका में मेट्रो ट्रेन में बैठकर सफ़र करते हुए अपने हिन्दुस्तान की वह धक्कों वाली ट्रेन बहुत याद आती है। एक एक करके सभी लोग धक्के खाते हुए मसाज का मजा लेते हैं। वैसे जो मजा जनरल डब्बे का है वह मजा हवाई जहाज का भी नहीं। लेकिन उसमे भी अगर आपकी खुद की सीट पक्की हो और वह भी खिड़की वाली फिर आप ब्रम्हांड के सबसे अमीर प्राणी हैं। आपके सामने स्वर्ग भी तुच्छ है। अब देखिये... आप सुई से लेकर मंगल तक की चर्चा कर सकते हैं। वैसे मैंने बहुत ज्ञानी पाये हैं इन जनरल डब्बों में। एक बार एक मजदूर से दीखने वाले व्यक्ति की राजनैतिक समझ ने मुझे  अचंभित कर दिया था। उसने इंदिरा युग और लोहिया के समाजवाद की ऐसी बखिया उधेड़ी थी की पूरा डब्बा वाह वाह कर उठा था। आपातकाल का दर्द, चौरासी की बेबसी पर वह दुखी भी था। लेकिन कांग्रेस से खुश भी था और निराश भी।

एक बार एक सींग(मूंगफल्ली) और चना बेचने वाले व्यक्ति से भी रामायण का एक मन्त्र सीखने को मिला था। एक व्यक्ति नेताओं के किसी भी मामले में बरी हो जाने पर बोला की 'समरथ के नहीं दोष गोसाईं', इस पर उस चने वाले में विरोध किया और कहा की आप रामायण की चौपाई पूरी पढ़िए और उसका अर्थ समझिये... चौपाई के अनुसार समरथ कौन है?"समरथ के नहीं दोष गोसाई, रबि पावक सुरसरि की नाई"। इन नेताओं पर आप यह चौपाई फिट न करैं, यह चौपाई का मंतव्य कुछ और है... वाकई यह अद्भुत ज्ञान की बात है।

फिलहाल न्यूयार्क में मेट्रो ट्रेन में बैठे हुए इन पढ़े लिखे समझदार लोगों को देखता हूँ, हर कोई अपने अपने मोबाइल में लगा है(मैं भी यह पोस्ट टीप रहा हूँ) और अगर ट्रेन की आवाज़ न हो तो अपने कान ठीक हैं या नहीं उस पर भी शंका हो जाए। हेडफोन घुसेड कर अपने आप में व्यस्त इस जनता की तारीफ की जाए या नहीं पता नहीं लेकिन एकदम संन्नाटे सी शान्ति है। चलिए अब मेरा स्टेशन आ गया।

अब रोज की डायरी अब ब्लॉग पर आती रहेगी :) अगर सीट न मिली और धक्के खाने पड़े तो और बात है।