रविवार, 13 जुलाई 2014

यात्रा वृत्तांत-1 : मुंबई से उदयपुर

मित्रों ब्लोगिंग की आदत को फ़िर से दिनचर्या का हिस्सा बनानें के लिए मुझे मोबाईल ब्लोगिंग का इस्तेमाल काफ़ी अच्छा लग रहा है। यह पूरी श्रंखला मोबाइल से पोस्ट की जा रही है सो थोड़ी बहुत भूल चूक के लिए क्षमा। आजकल फ़ेसबुक नें ब्लोगिंग को काफ़ी हद तक बरबाद कर दिया है और कई हिन्दी ब्लाग बन्द होनें की कगार पर हैं। ऐसे में ब्लोगिंग फ़िर से शुरु कर रहा हुं... आप सभी का सहयोग चाहिए... पिछले महीनें अपनी मुम्बई से बनारस की सडक यात्रा को श्रंखला बद्ध रूप में आपके सामने रख रहा हुं... आज उसकी पहली कडी...  

मित्रों जब हम 26 जून को मुंबई से बनारस की यात्रा पर निकले तो हमारी यात्रा का पहला चरण गुजरात होते हुए उदयपुर तक (लगभग-800 किमी) का था। सुबह तैयारी करते करते और निकलते निकलते हमको आठ बज गए, कलम्बोली में पेट्रोल पम्प पर डीज़ल फुल कराया और हवा चेक कराई और फिर सायन पनवेल हायवे पर गाडी दौड़ा दी। मुम्बई और नवी-मुम्बई में डीजल का भाव आग लगाने वाला है और उसी लिए रायगढ में गाडी की टंकी फ़ुल कराना एक तर्क संगत विकल्प है। मुम्बई में ६५ रुपये और नवी मुम्बई में ६९.६७ रुपये प्रति लीटर का भाव, रायगढ में यह ६४ रुपए के बराबर है। फ़िलहाल हम कलम्बोली से सायन पनवेल एक्सप्रेस-वे होते हुए बेलापुर, नेरूल, जुई-नगर, तुरभे, कोपरखैरने, ऐरोली और थाने-घोडबन्दर रोड होते हुए एन-एच-८ पर आ गये। ९ बजे तक हम अहमदाबाद रोड पर आ गये थे। मित्रों, चार लेन का यह हायवे ट्रकों से भरा हुआ और काफ़ी थकानें वाला है। भारत के ट्रकों और ट्रक चालकों की स्थिति काफ़ी दयनीय है और भरे हुए स्लो ट्रकों को सुपर स्लो ट्रको को ओवरटेक करते समय हायवे को जाम कर देना आम है। फ़िलहाल मेरा सफ़र काफ़ी लम्बा था तो मैं अपना धैर्य बनाकर आराम से ही गाडी निकाल रहा था। इस रास्ते पर टोल आपको लूट लेगा सो ध्यान रखिएगा। 

हमारा दिन भर का रूट मैप:-

दिन-१:- मुम्बई से उदयपुर 

इस हायवे के कुछ चित्र:-  बरसात शुरु हो चुकी थी सो हर ओर हरियाली थी और बादलों से भरा हुआ आकाश मन को मोहित कर रहा था। लीजिए आप भी आनन्द लीजिए... 



इस हायवे पर हर लेन में ट्रकों का ही वर्चस्व होता है सो ध्यान से गाडी चलानें की ज़रूरत है। देखिए एक बानगी भर...  


यह एक सुन्दर सा मंदिर, एकदम सोमनाथ मंदिर की प्रति-मूर्ति लग रहा था। 


आदि बाबा कभी कभी मेरी गोदी में आनें के लिए मार कर देते हैं... सो बस उनको थोडी देर के लिए बहलाते और खिलखिलाते... 




वडोदरा के पास हमें सीसीडी मिला सो जनाब अभिषेक कुमार को याद करते हुए हमनें ब्लू ब्रीज़ मंगाया। देखिए आदि बाबा का प्रेम... आदि इसको छोड ही नहीं रहा था। रे अभिषेक देख ले अपना भतीज़ा का हरकत.... 


समय: दोपहर के साढे तीन बजे.... इस जगह पहली बार हमें गरमी का एहसास हुआ... हमारा यह विराम वडोदरा के नज़दीक करजान नामक स्थान पर था। कुछ चित्र इस फ़ूड-हब के... नाम से तो इमानदार था ही आगे पता नहीं..... :-)



नक्शे के अनुसार यह वडोदरा के लगभग तीस किमी पहले एनएच-८ पर
मैं मेरे निर्धारित समय से लगभग दो घंटा पीछे था सो मैंनें समय बरबाद किए बिना वापस हायवे पर ध्यान लगाया। अब अगला विराम मुझे राजस्थान में लेना था। वडोदरा और अहमदाबाद के मध्य बना एन-ई-१ (नेशनल एक्सप्रेसवे क्रमांक-१) पर अपना चेतक भगानें की मेरी बडी इच्छा थी लेकिन इस हायवे नें मुझे निराश किया। मुम्बई और पुने के बीच बना एक्सप्रेस-वे इससे कई गुना बेहतर है और यह दो लेन का हायवे वह भी बिना सर्विस लेन के अजीब था। बीच बीच में चलते कछुआ ट्रक स्थिति को और बदतर कर रहे थे। मैं एक सौ की औसत रफ़्तार की उम्मीद पाले बैठा था और मैं बमुश्किल साठ की औसत रफ़्तार ही पा सका। स्थिति को और खराब कई जगहों पर चल रहे पैच वर्क नें किया। 


इसके बाद अहमदाबाद शहर की ट्रैफ़िक व्यवस्था नें मुझे सोचनें पर मजबूर कर दिया की जिस मोदी के गुजरात माडल की दुनिया भर में इतनी हवा है वह वाकई में एक बुलबुला है.. टूटी फ़ूटी सडकें, सडको पर फ़ैली गन्दगी और हर ओर टोल ही टोल.... वाकई हद है। अहमदाबाद शहर में एक अजीब सा वाक्या हुआ... गुजरात सडक परिवहन के नियम के अनुसार आपकी हेड-लाईट पर पीली पट्टी लगी होनी चाहिए और हमनें भी पीला टेप मारा था, लेकिन मोदी के विकसित राज्य के विकसित पुलिस वाले बाहर की गाडी देखकर हमपर टूट पडे, उन्होनें जो सूलुक किया वह वाकई अजीब था, उन्होनें गाडी के सारे कागज पत्तर देखे और फ़िर भी हमसे चार हज़ार के फ़ाईन की मांग कर डाली... बाद में बारगेन करते हुए पन्द्रह सौ रुपए की मांग। भाई बडी मुश्किल से पीछा छुडाया। गुजरात नें हमे दुखी कर दिया और हम अब कभी गुजरात नहीं जाएंगे के संकल्प के साथ हमनें गाडी को राजस्थान की ओर घुमाया। मित्रों गुजरात वास्तव में अच्छा राज्य होगा लेकिन मुझे वाकई में गुजरात से कांग्रेस जैसी नफ़रत हो गई है। यह केवल हवा-हवाई है, सडके बनाओ लेकिन उन पर टोल की लूट लगाओ, हर ओर केवल बकर बकर फ़ैलाओ, पुलिसिया डंडा दिखाओ और दुनिया भर में ढोल बजाओ। बहरहाल हम गुजरात को गरियाते आगे बढे और हिम्मतनगर के रास्ते डूंगरपुर होते हुए राजस्थान आए। राजस्थान में डीज़ल का भाव था उनसठ (५९) रुपए सो दिन में दूसरी बार टैंक फ़ुल किया गया। गुजरात और राजस्थान की सीमा पर बनें इस एचपी के पेट्रोल पम्प पर कार्ड पेमेंट की सुविधा भी थी। हमनें कार्ड से पैसा पे किया और आगे की ओर बढ चले। दिन अब ढलनें को था और हमारा जीपीएस अभी भी दो सौ किलोमीटर की दूरी दिखा रहा था। मित्रों जिस गुजरात में हम टोल से परेशान थे अब राजस्थान में स्थिति काफ़ी नियंत्रण में थी :-) बुरे दिन निकल गये थे और अब हम अच्छे दिनों में आ गये थे। 

रात्रि साढे दस बजे हम उदयपुर में थे और हमनें होटल वात्सल्य (उदयपुर स्टेशन के पास) में एसी रूम लिया। दिन भर की ड्राईव:- आठसौ किमी, चौदह घंटे और बीस किमी प्रति लीटर की मायलेज....  एक दिन के हिसाब से यह मेरा अब तक का सबसे लम्बा दिन था वैसे यह कीर्तिमान मैंने इसी यात्रा में तोड दिया था वह किस्सा मैं अगली पोस्ट में सुनाऊंगा लेकिन २६ जून तक यही मेरा सबसे लम्बा कीर्तिमान था। 

कल की पोस्ट में देखिए उदयपुर से अजमेर, जयपुर होते हुए आगरा का सफ़र..... 

4 टिप्‍पणियां:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, निश्चय कर अपनी जीत करूँ - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

राजीव कुमार झा ने कहा…

रोचक यात्रा वृत्तांत.अगली कड़ी की प्रतीक्षा.

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया है देव जी ।

कमल ने कहा…

लाजवाब