शनिवार, 8 मई 2010

कतरा कतरा ज़िन्दगी बीन लो... देव बाबा की एक कविता



कतरा कतरा ज़िन्दगी बीन लो...
गम से ज़िन्दगी की दावेदारी छीन लो...
राह में अगर मिले कोई गम
हंसो, मुस्कुराओ.. गीत गाओ...
मगर गम की दावेदारी मत स्वीकारो
ज़िन्दगी बीन लो
वापस अपनी ज़िन्दगी छीन लो


-देव

6 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

waah...vapas apni zindagi cheen lo...

शिवम् मिश्रा ने कहा…

ह्म्म्म बढ़िया !!

KK Yadav ने कहा…

हंसो, मुस्कुराओ.. गीत गाओ...
मगर गम की दावेदारी मत स्वीकारो
ज़िन्दगी बीन लो
वापस अपनी ज़िन्दगी छीन लो

...खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई.

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'शब्द सृजन की ओर' पर 10 मई 1857 की याद में..आप भी शामिल हों.

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.

संजय भास्‍कर ने कहा…

कई रंगों को समेटे एक खूबसूरत भाव दर्शाती बढ़िया कविता...बधाई

mridula pradhan ने कहा…

khoobsurat kavita.