बुधवार, 5 मई 2010

झगडा... देव बाबा की एक लघु कथा

आज सुबह सुबह बिना मतलब के अम्मा से झगडा कर लिया और बिना नाश्ता किये हुए मैं बस पकडनें चौराहे पर चला गया । अम्मा चिल्लाती रही कि बेटा नाश्ता कर ले... मगर मैं मुडा नहीं । अरे भाई कल रात देर से घर आने के लिये अम्मा ने डांटा था ना... सो नाराज हो गये थे और क्या । बस पकडी और चुप चाप निकल गये। ओफ़ि़स पहुंचे और अपना काम शुरु कर दिया । अम्मा नाराज क्यों हो गयी.... मैं बडा हो गया हूं... अपने फ़ैसले खुद ले सकता हूं... और भी ना जाने क्या क्या... । बस अभी बहुत हो गया, अब नहीं रहना ऐसे में.... बहुत अच्छा होता है अंग्रेजो की संस्कृति में .... सभी को आज़ादी है अपने फैसले लेने के लिए.... |

बस दिन भर काम किया... और रात में ज़बरदस्ती देर तक रुके... बिना मतलब पूरा दिन लगे रहे... | दो चार बार घर से फोन आया मगर उसको काट दिया... क्यों बात करें भाई... नहीं सुनना किसी का प्रवचन... | फिर भी घर कभी ना कभी तो जाना ही था ना.. सो रात के दस बजे घर पहुंचे... | देखा ताला लगा हुआ था... सोच कर मन परेशान... क्या हुआ जो रात के दस बजे घर पर ताला लगा हुआ है... पड़ोस के शर्मा जी से पूछा तो पता चला की मेरी अम्मा को पेट में दर्द उठा था और अभी अस्पताल ले गए हैं.... सुनते ही पैर के नीचे से ज़मीन निकल गयी.... सीधा सिटी हॉस्पिटल... देखा अम्मा अब ठीक है... डॉक्टर ने बोला इन्होने दो रातों से कुछ खाया नहीं था... | यार मेरे.... मेरी अम्मा ने दो रातों से कुछ इसलिए नहीं खाया था... क्योंकि वह मेरा इंतज़ार कर रही थी खाने पर.... मैं कैसे भूल गया की मेरी अम्मा अकेले खाना नहीं खाती.... हमेशा मुझे खिलने के बाद ही खाती है.... सो जब मैं दोस्तों के साथ पार्टी में व्यस्त था... तब मेरी मां मेरी राह देख रही थी.... |

बस उसके बाद आत्म-ग्लानी से गला भर गया... छोटू को बोल के रिक्शा बुलाया और अम्मा को ले के घर आया... | घर आया और मुंग की दाल की खिचड़ी बनायीं... मैंने और अम्मा दोनों ने खायी... एक एक कौर खिचड़ी अमृत से मीठी लग रही थी और समझ में आ रहा था... क्या है मेरी तहजीब ... मेरी संस्कृति.... मेरे अपने.... परिवार का सुख..... |


-देव

7 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आज कुछ अलग ही मूड में हो देव बाबु ?? क्या बात है ??
वैसे लघु कथा बढ़िया रही !!

Ra ने कहा…

...वाह भई बुहत सही लिखा है आपने माँ ऐसी ही होती है ...........ऐसा ही कुछ माँ पर हमने भी यहाँ लिखने की कोशिश की है .....बस आपके अमूल्य सुझाव के प्रतीक्षा में है
http://athaah.blogspot.com/

संजय भास्‍कर ने कहा…

लघु कथा बढ़िया रही !!

Apanatva ने कहा…

dil par asar chod gayee.......
ma aisee hee hotee hai........

विवेक रस्तोगी ने कहा…

अरे वाह खूब लिखा है। मूँग की दाल की खिचड़ी याद दिला दिये हो अब बनाकर खानी पड़ेगी :)

कुश ने कहा…

रुलाओगे क्या यार देव...?

Manju Mishra ने कहा…

"अम्मा तो बस अम्मा हैं, हम कुछ भी करें उनका प्यार बिना शर्त बिना बाधा हमारे लिए प्रवाहित ही होता रहता है"

बहुत ही अच्छी कहानी. लघु कथा मे , जहाँ पृष्ठ भूमि के विस्तार की बहुत अधिक सम्भावना नहीं होती उसके ज़रिये आपने इतने शशक्त ढंग से भावनाओं को व्यक्त किया है अति सुन्दर.