गुरुवार, 22 अप्रैल 2010

मेरी दुनिया मेरा जहां....

आखिर मेरी पहचान क्या है.... मेरी दुनिया मेरा जहां आखिर है क्या? आज मेरे ब्लॉग के शीर्षक के बारे में मेरे एक मित्र ने पूछा की इसका अभिप्राय आखिर है क्या..... तो भाई लोगों मेरी दुनिया में तो सभी आते हैं... कोई छोटा ना बड़ा... कोई खोटा ना खरा... कोई ऊँच-नीच नहीं... कोई दांव-पेंच नहीं.... मन से मन का रिश्ता और केवल इन्सान से इन्सान का रिश्ता.... आखिर यही तो है ज़िन्दगी के मायने.....

कुछ लाइनों में मैं अपने बारे में कुछ दर्शाने का प्रयास कर रहा हूँ....

आखिर मेरी दुनिया क्या है
छोटे बच्चे के समान भोलापन
ना कोई जांत पांत
ना कोई ऊँच-नीच
ना हिन्दू ना मुस्लिम
ना सीख ना इसाई
इंसान से इंसान को जोड़े
यही मेरी दुनिया है भाई

इन्सान को इंसान से
जोड़ने वाली राहों को तलाशना
मजहबों के बीच खड़ी दीवारों
को गिराना
इंसान और इंसानियत
को सबसे ऊपर करना
यही तो मकसद है मेरा
यही ध्येय है मेरा
ना दिल्ली का ना मुम्बई का
ना युपी का ना बिहार का
यह सागर, नदिया..पवन के झोंके
मैं मालिक सारे संसार का

-देव

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