मंगलवार, 6 अप्रैल 2010

ये नए मिजाज का शहर है....

मित्रो, बंधुओ और शुभ चिंतको.... आप पूछ सकते हैं की मित्र बंधू और शुभ-चिन्तक सभी को तीन केटेगरी में डालने का क्या फायदा... तो भैया जो मित्र हो वह ज़रूरी नहीं बंधू हो... और शुभ-चिन्तक भी हो... सो अलग अलग ही सही... | तो भैया देव बाबा आज बंधुआ मजदूरी करके वापस घर आ गए | मतलब ऑफिस से घर वापस आ गए.. और लैपटॉप ले कर बैठ गए हैं | जनता तो आज कल इडियट बक्सा यानी की टीवी पर आई पी एल के पीछे पगलाई हुई है सो.. देव बाबा को चैन कहाँ... वैसे आस पास कोई बंधू और मित्र भी नहीं जिससे बतिया कर थोडा समय बिताया जाए.. सो फिर क्या लैपटॉप लेकर ब्लॉग पर पूरी दुनिया को पकाने से बढ़िया क्या काम हो सकता है | सो भैया अच्छा लगे या ना लगे.... झेलो हमको |

अबे आज कल एक नया ट्रेंड चला है, गूगल टॉक पर लोग अपना स्टेटस व्यस्त कर लेंगे, अबे तेरी भैया मोरे अगर व्यस्त हो तो लाग-इन ही मत करो ना... मगर नहीं स्टाइल मारने के लिए ससुरे आयेंगे भी और व्यस्त भी रखेंगे.... एक हमारे दिल्ली वाले नीरज सर हैं, अबे कनपुरिया हैं ना पूरे दिन भर ऑनलाइन रहेंगे मगर आज तक कभी ज़िन्दगी में उत्तर दिए हो तो फिर क्या कहें.... स्टाइल है भैया.... जय हो... अब तो गायब मोड़ भी उपलब्ध है यार... बन्दे ऑनलाइन होंगे भी और नहीं भी होंगे... जय हो... चमत्कार है ना.. और चमत्कार को नमस्कार भी है... वैसे यह एक अजीब सी मानसिकता को दर्शाती है की बन्दे इंटरनेट पर आनलाइन भी रहना चाहते हैं और किसी को दिखना भी नहीं चाहते हैं | बढ़िया है ना.... और अजीब भी..

आज कल की दुनिया में मित्र कौन हैं...? ऑरकुट की मित्र लिस्ट में सौ, दो सौ लोग.... मगर सभी रीड ओनली हैं भैया.... समय का अभाव है यार.... बन्दे प्रक्टिकल हैं और ज्यादा किसी के मामले में टांग डालने में विश्वास नहीं करते हैं | वैसे अच्छा भी है कम से कम शक्ल तो दिख जाती है ना | वो बशीर बद्र साहब की एक नज़्म है ना की "कोई हाथ भी ना मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से ये नए मिजाज का शहर है यहाँ फासलों से मिला करों" बस साहब हम भी इस नए मिजाज़ के शहर में खुद को ढाल रहे हैं, जल्दी ही ढल भी जायेंगे.... क्योंकि ज़िन्दगी सब सिखा देती है.... ग्लोबलाइज़ेशन की मारी इस दुनिया में इंसान को सब कुछ आसानी से मिल जाता है ना.... सो सामाजिकता थोड़ी कम हो रही है बस और कुछ नहीं.... याद करिए गाँव घर की बात.. कोई पता पूछने आये तो बंद घर तक छोड़ कर आता था... गाँव भर में चाचा, मामा और ना जाने कितने तो भैया बिना मांगे ही मिल जाते थे... यहाँ शहर बस रहा है... और पडोसी को पडोसी का पता नहीं.... तो भैया नीरज सर अगर आप इस ब्लॉग को पढ़ें.... तो कम से कम चैट का उत्तर दीजिये... नहीं तो ऑनलाइन ही मत आइये भाई.... खामखा में खुद को बेकूफ बनाने से क्या फायदा.....

जय राम जी की...
देव

1 टिप्पणी:

संजय भास्‍कर ने कहा…

हमेशा की तरह उम्दा