आज सुबह सुबह बिना मतलब के अम्मा से झगडा कर लिया और बिना नाश्ता किये हुए मैं बस पकडनें चौराहे पर चला गया । अम्मा चिल्लाती रही कि बेटा नाश्ता कर ले... मगर मैं मुडा नहीं । अरे भाई कल रात देर से घर आने के लिये अम्मा ने डांटा था ना... सो नाराज हो गये थे और क्या । बस पकडी और चुप चाप निकल गये। ओफ़ि़स पहुंचे और अपना काम शुरु कर दिया । अम्मा नाराज क्यों हो गयी.... मैं बडा हो गया हूं... अपने फ़ैसले खुद ले सकता हूं... और भी ना जाने क्या क्या... । बस अभी बहुत हो गया, अब नहीं रहना ऐसे में.... बहुत अच्छा होता है अंग्रेजो की संस्कृति में .... सभी को आज़ादी है अपने फैसले लेने के लिए.... |
बस दिन भर काम किया... और रात में ज़बरदस्ती देर तक रुके... बिना मतलब पूरा दिन लगे रहे... | दो चार बार घर से फोन आया मगर उसको काट दिया... क्यों बात करें भाई... नहीं सुनना किसी का प्रवचन... | फिर भी घर कभी ना कभी तो जाना ही था ना.. सो रात के दस बजे घर पहुंचे... | देखा ताला लगा हुआ था... सोच कर मन परेशान... क्या हुआ जो रात के दस बजे घर पर ताला लगा हुआ है... पड़ोस के शर्मा जी से पूछा तो पता चला की मेरी अम्मा को पेट में दर्द उठा था और अभी अस्पताल ले गए हैं.... सुनते ही पैर के नीचे से ज़मीन निकल गयी.... सीधा सिटी हॉस्पिटल... देखा अम्मा अब ठीक है... डॉक्टर ने बोला इन्होने दो रातों से कुछ खाया नहीं था... | यार मेरे.... मेरी अम्मा ने दो रातों से कुछ इसलिए नहीं खाया था... क्योंकि वह मेरा इंतज़ार कर रही थी खाने पर.... मैं कैसे भूल गया की मेरी अम्मा अकेले खाना नहीं खाती.... हमेशा मुझे खिलने के बाद ही खाती है.... सो जब मैं दोस्तों के साथ पार्टी में व्यस्त था... तब मेरी मां मेरी राह देख रही थी.... |
बस उसके बाद आत्म-ग्लानी से गला भर गया... छोटू को बोल के रिक्शा बुलाया और अम्मा को ले के घर आया... | घर आया और मुंग की दाल की खिचड़ी बनायीं... मैंने और अम्मा दोनों ने खायी... एक एक कौर खिचड़ी अमृत से मीठी लग रही थी और समझ में आ रहा था... क्या है मेरी तहजीब ... मेरी संस्कृति.... मेरे अपने.... परिवार का सुख..... |
-देव
11 टिप्पणियां:
देर आमद ... दुरुस्त आमद !
बहुत बढ़िया , दिल को छु गई
बेहतरीन भावों का संयोजन है इस प्रस्तुति में ।
aksar hum aisee galti kar dete hain, bhool jaate hain unhein jinke karan hamara wazood hai... pata nahi kyun is tarah ki posts mujhe rula deti hai...
इस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - आखिर हम जागेंगे कब....- ब्लॉग बुलेटिन
टप टप गिरते आंसुओं को कैसे शब्द दूँ ...
ये ऐसा क़र्ज़ है जिसको अदा कर ही नहीं सकता,
मैं जब तक घर न लौटूँ माँ मेरी सजदे में रहती है!!
देव बाबा, अपने जश्न में हम भूल जाते हैं कि कोई हमारा इंतज़ार भी कर रहा है!!
कई बार रातों में उठकर
दूध गरम कर लाती होगी
मुझे खिलाने की चिंता में
खुद भूखी रह जाती होगी
मेरी तकलीफों में अम्मा, सारी रात जागती होगी !
बरसों मन्नत मांग गरीबों को, भोजन करवाती होंगी !
सबसे सुंदर चेहरे वाली,
घर में रौनक लाती होगी
अन्नपूर्णा अपने घर की !
सबको भोग लगाती होंगी
दूध मलीदा खिला के मुझको,स्वयं तृप्त हो जाती होंगी !
गोरे चेहरे वाली अम्मा ! रोज न्योछावर होती होंगी !
आप सभी का आभार....
ऐसा सुख कहाँ मिलता है पार्टी में..
रात को खाना खाया ?
कितने बजे लौटे?
और ये कोई लघुकथा है ?
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