एक छोटी बच्ची....
अठखेलियाँ कर रही थी...
खेल रही थी
एक गुब्बारे से
कभी ऊपर उछाल देती
कभी उसे उठाने दौड़ पड़ती
कभी पापा को खींचती
कभी चाचू को खींचती....
कभी जोर जोर से चिल्लाती
तो कभी एकदम चुप हो जाती....
उसके खेल में कितनी सजीवता थी...
उसके प्रेम में कितनी आत्मीयता थी....
वह विधाता का रूप थी....
हाँ वह परमेश्वर का प्रतीक थी....
क्योंकि वह छोटी बच्ची थी...
वह प्यारी सी बच्ची थी....
देव
9 टिप्पणियां:
यह कविता दिल को छू गई.... बहुत खूबसूरती से लिखा है.... सुंदर भाव.....
यह कविता दिल को छू गई.... बहुत खूबसूरती से लिखा है.... सुंदर भाव.....
निदा फ़ाज़ली साहब ने क्या खूब कहा है ...................
" घर से मज्जिद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें ...............किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए |"
बेहद उम्दा रचना, देव बाबु |
बहुत सच्ची रचना, देव बाबा!! बढ़िया रची!
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
बहुत सुन्दर
jai ho देव बाबा
बहुत खूब्…………कल के चर्चा मच पर आपकी पोस्ट होगी।
बहुत खूबसूरत भाव ..
एक टिप्पणी भेजें