डाकुओं ने घने जंगल में बस लूटी..... और बन्दूक की नोक पर सभी से जो निकल सकता था निकलवाया.... ले तेरी कान की बालियाँ... घडी.... चेन.... चूड़ी.... पर्स से सारे पैसे..... और हाँ उसके बाद फिर बस को जाने नहीं दिया, पहले लुटे गए सामान का आंकलन किया... उसके बाद फिर एक एक यात्री से हाथ जोड़कर माफ़ी मांगी और सभी का सामान डाकुओं के सरदार ने वापस करवाया.... यह ड्रामा देख कर एक छोटा डाकू बोला... सरदार यह क्या है..... इत्ती मेहनत से बस लूटी और तुम सारा सामान वापस किये दे रहे हो... आखिर डाकुओं की इज्ज़त का कुछ ख्याल है या नहीं.... सरदार:- अबे चुप, पूरी बस का गल्ला जोड़ के भी तीस पैतीस हज़ार के ऊपर का माल नहीं हुआ है.... यह बारात का सीजन है और हर बस के एक लाख रूपये तो केवल दरोगा के घर पहुचाने हैं..... अबे अगर तीस हज़ार बस का गल्ला है तो क्या सत्तर हज़ार पल्ले से डाल के देंगे..... सो चुप कर और माल वापस करने में मेरी मदद कर......
समझे...? की नहीं समझे..... बोलो असली डाकू कौन है...? आज कल ज़माना बदल गया है.... चोरी करना बुरी बात नहीं है.... अगर पुलिस को भरोसे में ले के करी जाए तो... अभी दरोगा जी को बिना बताये और उनका हिस्सा पहुचाये बिना चोरी करोगे तो फिर तो गलत है ना..... वैसे केवल व्यंग्य के लिहाज़ से तो सही है यह सब बकर बकर लिख मारा... मगर यह बहुत बड़ी चिंता का विषय है..... यार आज तक आप लोगों ने सुना है की किसी स्टेट की पुलिस कभी एक दिन के लिए भी हड़ताल पे गई है.... अरे ट्राफिक पुलिस भी एक दिन की छुट्टी नहीं चाहती यार..... छुट्टी पे गए तो फिर घर कैसे चलेगा..... ऊपर की कमाई के बिना तो तोंद कैसे फूलेगी.... दरोगा जी नाके पे बैठे हैं.... तोंद फुला के... और अर्दल्ली सब हर ट्रक को रोक रोक के अपना पैसा ले ले के ही जाने दे रहा है...... अभी यार इसका कोई रिकार्ड नहीं होगा.... अर्दल्ली से ले कर मंत्री तक का हिस्सा होगा इसमें.....
मैं रोज मुम्बई और नवी मुम्बई के बीच चक्कर लगाता हूँ.... रहता नवी मुम्बई में हूँ और ऑफिस मुम्बई में है.... हमेशा देखता हूँ की पीक टाइम में ट्रक कितनी आसानी से अन्दर आ जाते हैं.... मुम्बई जैसे शहर में जहाँ सड़कों को नो-ट्रक ज़ोन बनाया हुआ है (केवल कुछ सडको को) वहां पर कोई भी ट्रक पैसा खिला के आसानी से शहर में घुस सकता है.... बस केवल मामा को कुछ पैसा खिला दीजिये..... ट्राफिक के बारह बज जायेंगे और मामा केवल तोंद फुलाए बैठा रहेगा..... दिखेगा तो केवल तब कोई दो गाड़ियाँ ठुक जाएँगी.... और मामा को अपने खाने के लिए कुछ जुगाड़ का बंदोबस्त होता दिखेगा..... कित्तनी आसानी से रोड क्रोस करो और मामा को हफ्ता दे दो..... और फिर बिंदास शहर में घूमो..... ससुरा... किसी भी टाइम कोई भी ट्रक निकले तो बिना हफ्ता दिए नहीं जा सकता.... अभी मुम्बई में रोजाना कित्ते ट्रक आते होंगे.... हर ट्रक कम से कम सौ रुपया तो देता ही होगा.... जोडीये कित्ता हुआ... कितनी बड़ी इंडस्ट्री है ... ससुरा टाटा के टर्न ओवर से बड़ा होगा पूरे देश में केवल पुलिसिया डंडे का तंत्र.....
यार अलबेला खत्री की चार लाईनें बहुत भा रही थीं... अलबेला खत्री जी आपकी अनुमति के बिना आपकी चार लाईनें अपनें ब्लोग पर पटक रहा हूं....
अब किसका विश्वास यहां है, मेहनत करके खानें में
सारी दुनियां लगी हुई है, दो को बीस बनानें में
पहले ज़ेब कटी थी, लेकिन अब कपडे भी उतरेंगे...
भाई साहब चले गये हैं, रपट लिखानें थाने में...
सोच कर देखिये..... इस तंत्र के लिए ज़िम्मेदार कौन है.... शायद हम... और केवल हम.....
-देव
11 टिप्पणियां:
निश्चित ही हम जिम्मेदार है. अपनी सुविधा पाने के लिए हम घूस देते हैं तो लेने वाले कैसे न लें.
ट्रेन से लेकर हर जगह हम ही तो आमंत्रित करते हैं इस तरह के नजरिये को.
बहुत उम्दा आलेख हल्के फुल्के अंदाज में गंभीर बात!
अलबेला जी की पंक्तियाँ एकदम सटीक बयानी हैं.
बहुत ही बढ़िया और सार्थक पोस्ट .............देव बाबा की जय !
dev baba badi hi saarthak post
विचारणीय लेख के लिए बधाई
आज कल ज़माना बदल गया है.
log badal gaye hai ...
sher to lajwaab.......
अच्छे अंदाज़ में बढ़िया बात कही है ,,,धन्यवाद
हिन्दी ब्लाग पें फ़ैले हुए महाभारत और बेकार के विवादों से दूर रहते हुए, राष्ट्र भाषा की सेवा में तत्पर रहें. ब्लागिंग की दुनियां को आप जैसे लोगों की ज़रुरत है।
सार्थक पोस्ट, मैं स्वयं दिल्ली ग्रीन पार्क से नोएडा के बीच सफ़र करता हूं और यकीन मानिए ऐसा ही कुछ हाल दिल्ली का भी है। चिंतन का विषय लाए हो देव बाबा.
पहले ज़ेब कटी थी, लेकिन अब कपडे भी उतरेंगे...
भाई साहब चले गये हैं, रपट लिखानें थाने में...
ha ha. sahi hai Guru.
लो भाई, हमनें दसवां कमेण्ट पूरा कर दिया. देव बाबा ज़िन्दाबाद.
शायद हम... और केवल हम!
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