बुधवार, 26 मई 2010

तवे पे आस्ट्रेलिया और अमेरिका... खानी हो तो आ जाओ भैया...

वैसे कुछ भी हो और कैसे भी हो... मां को बच्चे की हर हरकत का अंदाज़ा हो ही जाता है। ना जानें आज भी मेरी हर हरकत का अंदाजा मेरी अम्मा को कैसे हो जाता है। मां तो मां है ना... अभी समझ नहीं आता... शायद कुछ और दिनों के बाद समझ आएगा। छोटे से बच्चे की हर हरकत को समझनें का सामर्थ्य मां में ही है ना... मां में जादू है... कैसे घर चलाना है... कैसे सबको लेकर चलना है... कैसे रसोई पकानी है... मेज़बानी कैसे निभानी है... देव बाबा जैसे लोगों को संभालना है... भई अम्मा तो ग्रेट है ही... आज शाम को अपना भोजन पकानें के बाद खाने बैठा तो फ़िर याद आया की यार रोटी नहीं बनाई... यार रोटी बनानें में पंगा हो जाता है... कितनी भी कोशिश करो गोल नहीं बनती... कभी आस्ट्रेलिया का नक्शा तो कभी अंडमान का नक्शा.. अंडमान की मिसाल देखकर चौंकिए मत क्योंकी देव बाबा नें अपनी रसोई में तवे पर अंडमान भी बनाया है... फ़िर याद आ गया वह दिन जब बिंदास बैठे रहते थे और अम्मा के हाथों की गरमा गरम रसोई का मजा लेते थे....

मैं और मेरी अम्मा
सोंधी सोंधी गरम गरम रोटी
तवे से तुरत उतरी
और मेरे प्लेट में आई
बस गरमा गरम ही खा ले बेटा
अम्मा दूर से बोलती
और फ़िर मैं शुरु हो जाता
एक के बाद एक
गरमा गरम फ़ुलके आते जाते
देव बाबा गटकते जाते
पेट बोलता बस कर बाबा
झट पट हम हजम कर जाते



बस फ़िर क्या साहब भर पेट मौज हो जाती... एकदम क्या गोल होतीं... जाने कौन सा जादू है यार अम्मा के हाथों में... वैसे हम भी कोई छोटा काम नहीं कर रहे हैं... अपनी रसोई पकाते हैं और रोजाना कभी आस्ट्रेलिया तो कभी अमेरिका को खाते हैं.... सही है ना..?

-देव

9 टिप्‍पणियां:

विवेक रस्तोगी ने कहा…

इसका मतलब बेलन से ढ़ंग से प्रेक्टिस नहीं चल रही है, नहीं तो अब तक तो बिल्कुल गोल रोटी बनाना आ जाती। अमेरिका ने सुन लिया ना तो बस बेलन लेकर ही आपके ऊपर दौड़ पड़ेगा।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

काश! आपके बेलन से कुछ पडौसी मुल्कों का नक्शा बिला होता तो खाने-पीने में हम भी साथ हो लिए होते. अब दूर देश के मानचित्र बेलोगे तो हमें अपने कमजोर हाजमे को लेकर सोचना पडेगा.

M VERMA ने कहा…

इसके लिये प्रशिक्षु संस्थानों की जानकारी चाहिये तो मुझसे सम्पर्क कर सकते है. मानचित्र बेलना भी तो कला है

Rajeev Bharol ने कहा…

मतलब मैं चपाती बनाने में आपसे ज्यादा माहिर हूँ. मैं जब बनाता हूँ तो श्रीलंका का नक्शा बनता है.

Udan Tashtari ने कहा…

करत करत अभ्यास ते...सीख जाओगे देव बाबा. अच्छा यह है कि घर में बना कर खा रहे हो. होटल में खा रहे होते तो अब तक शरीर अमरीका के नक्शे के समान हो जाता. :)

अम्मा की बनाई रोती-वो तो हमेशा ही याद आयेगी चाहे कितना ही गोल बना लोगे- उसमें उसकी ममता की सौंधी खुशबू नहीं न होगी.

आज हमारी कहानी भी अम्मा के खाने को लेकर ही लिखी हुई है. अभी आधे घंटे में आयेगी.

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

अंडमानी रोटी भी दिखाते तब मानते कि बड़े लायक हो !!
झूठ बोलते हो.
वैसे अमेरिका वाली बात सही है पर भाई तुम्हें बताता कौन है कि हमेँ अमेरिका वाली रोटी बनानी आती है !!
यार ये पता नहीं चल पा रहा है. :-)

Ra ने कहा…

माँ के हाथ के खाने की बात ही निराली है ,,,पर जब भूख़ कुछ ज्यादा ही लगे तो खुद प्रयोग करने में क्या बुराई है .....नक्शा जैसा भी बने उस नक़्शे को कभी माँ देखती तो ख़ुशी और ममता से निहाल हो जाती ....कभी नक्शा बना कर माँ को जरुर बताना .....समय मिले तो एक चित्र हमें भी भेजना .....

राम त्यागी ने कहा…

ek aur nayaab posting ...sameer ji ki comments se agree hoo :)

शिवम् मिश्रा ने कहा…

फिर खाने पर पोस्ट लगाई .................... देव बाबु, काहे हमारे पीछे पड़े हो ??
यार और कोई टोपिक नहीं है क्या ??
समझा कर यार .............सेंटी हो जाता हूँ ...........क्या फायेदा मेंटल भी हो गया तो ??