गुरुवार, 20 मई 2010

पीछे पडी है यार....

आज ओफ़िस से घर आते समय मेरे एक मित्र नें मुझसे लिफ़्ट मांगी, अब साहब घर तक का साथ था सो मेरे मित्र मेरी गाडी में आ गये। गाडी चली और थोडी ही देर में हमारे मित्र के मोबाईल पर उनकी महिला मित्र का फ़ोन आ गया... अब भई क्या बताएं बन्धू के चेहरे की रंगत... खिली हुई मुस्कान और फ़िर क्या प्रेम पूर्वक भाषा... वाह... ससुरे कभी अपनी अम्मा से भी ऐसे बतियाया कर ज़िन्दगी भर दुआएं देगी तेरे को. बहरहाल बातचीत का कोई मुद्दा नहीं था और मेरे हिसाब से तो एकदम बकवास बातें हो रही थी मगर फ़िर भी प्रेम पुर्वक वार्तालाप के बीच खलनायक बननें की मेरी कोई इच्छा ना थी, सो हम चुपचाप ड्राईवर की तरह गड्डी भगाते रहे और वह मध्यम स्वर मे बतियाते रहे । कोई बीस मिनट के बाद उनकी शौर्ट काल खत्म हुई तो बन्धू के मुख से जो प्रवचन निकला वो सुनिये... पीछे पडी है यार... अबे तेरी तो...

वैसे यहां एक बात कहूं तो मेरे मित्र के प्रति ना तो जलन की भावना थी और ना ही कुछ और बात, बस एक ही बात जो मुझे खटक रही थी और वह यह की बकवास बातों के लिए आज कल की जनता के पास कितना समय है? एक हमारे पास टाईम की इतनी किल्लत है और इनके पास ससुरा बेकार फ़ेंकनें के लिये भी समय की भरमार है । और उससे भी ज्यादा बडी बात... नारी अगर मर्यादा में रहे तो शालीनता की प्रतिमूर्ति और मां का रुप है, और अगर अपनी मर्यादा को तोड डाले तो फ़िर वह उस बिगडी हुई नदी के समान होगी जो अपनें किनारे बसे सभी गांव सभी खेत डुबाते हुए तबाही मचाती हुई जाती है।

बस नारी को अपनी मर्यादा समझनी होगी और शालीनता को ही अपना गहना मानना होगा, और इनके जैसे बिगडे नौजवानों के लिये तो भगवान ही मालिक है यार । नारी को सम्मान दीजिए... नारी किसी भी स्वरुप में पुज्यनीय है... सम्माननीय है. उसे घर की लक्ष्मी के रुप में अपने घर में स्थान दीजिए, बेटी का प्रेम दीजिए... मां का आदर दीजिए... छोटी बहन का दुलार.... कितना प्रेम दिया है विधाता नें नारी को... इस प्रेम के लिये तो जितनें भी शब्द लिखे जाएं कम है.. और भारत की नारी को ही अपने स्वरुप को पहचानना होगा... रानी लक्ष्मीबाई, किरन बेदी, पन्ना धाय के स्वरुपों को चरितार्थ करना होगा.. तो फ़िर देखिए पूरी दुनियां कैसे बदल जाती है।

हिन्द की नारी
अपने रुप को जान
हिन्द की नारी
अपनें आप को पहचान
तुझे समाज को देनी है
एक नयी दिशा
तुझे ही करना है
जग का पुनरुत्थान
हे नारी जाग
अपने स्वरुप को पहचान
नीद से जाग
अपने स्वरुप को जान
अपने आप को पहचान...

आज का प्रवचन यही तक... आगे देव बाबा का प्रवचन कल फ़िर होगा....

-देव

6 टिप्‍पणियां:

honesty project democracy ने कहा…

बकवास बातों के लिए आज कल की जनता के पास कितना समय है? एक हमारे पास टाईम की इतनी किल्लत है और इनके पास ससुरा बेकार फ़ेंकनें के लिये भी समय की भरमार है ,बिलकुल सच कहा आपने ,आज कोई भी सत्य और न्याय के लिए एक शब्द भी नहीं बोल पाता है या दिन में आधा घंटा भी नहीं दे पता है / देव जी आज हमें सहयोग की अपेक्षा है और हम चाहते हैं की इंसानियत की मुहीम में आप भी अपना योगदान दें / पढ़ें इस पोस्ट को और हर संभव अपनी तरफ से प्रयास करें ------ http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/05/blog-post_20.html

M VERMA ने कहा…

हे नारी जाग
अपने स्वरुप को पहचान
सार्थक है ये आह्वान क्योकि नारी जब अपने स्वरूप को पहचान लेगी तो स्वयं ही स्थितियों के बिगड़ते स्वरूप में भी सार्थक सुधार आ पायेगा.
सुन्दर पोस्ट

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बोलो देव बाबा की .......................जय !!

http://darshanprashan-pratul.blogspot.com/ ने कहा…

यदि लज्जा ही निर्लज्ज होकर
घूमेगी घर के आँगन में.
तो स्वयं नयन की मर्यादा
भागेगी छिपने कानन में.

यदि लज्जा ही मुख चूमन को
लिपटेगी अपनी काया से.
तो कैसे आकर्षित होंगे
चख, ह्री की श्रीयुत माया से.

यदि लजा ही अवगुंठन की
आलोचक बन जाए भारी.
तो कौन कवच ऐसा होगा
होगी जिसमें निर्भय नारी.

राम त्यागी ने कहा…

:)

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब, लाजबाब !