शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

जय जय भाई लोगों,

जय जय भाई लोगों,
बहुत दिनों के बाद आज कुछ पल अपने लिए मिले... सो लैपटॉप उठा के कुछ भड़ास निकलने बैठ गए | आज किसी के बारे में लिखने का मन नहीं हो रहा, लिख के करेंगे भी क्या... बस मुंबई शहर जिंदाबाद... ऑफिस से घर और घर से ऑफिस की दिन-चर्या | बड़ी बड़ी बातें और बक बक... चलो भाई लोगों अब औकात पे आता हूँ और कुछ बकवास आप लोगों को भी सुनाता हूँ | भैया लीजिये एक वाक्या आप लोगों को भी सुनाता हूँ, दर-असल हुआ यह की हमारी शक्ल एकदम देहाती और आम इंसान जैसी लगती है, ऊपर वाले ने भी हमें एकदम कामन मैं वाला लुक दिया... ससुरा एकदम आम इंसान बनाया यार.. | अभी हुआ यह की मैं अपने मित्र के इंतज़ार में मेरी कंपनी की पार्किंग के खड़ा था... मेरे मित्र को आने में देरी थी तो मैं मेरी गाडी से टेक लगा कर खड़ा था... मेरे हाव-भाव में से यार मैं कोई विवादास्पद व्यक्ति तो नहीं लग रहा था..., मगर भाई क्या कहें आपको एक मरा सा सिक्योरिटी वाला मेरे पास आता है और बोलता है किससे मिलना है, और यहाँ पार्किंग में ऐसे किसी भी गाड़ी से टेक लगा कर क्यों खड़े हो... | यहाँ से जल्दी जाओ... और वहां बाहर निकलने का गेट है | यार क्या बताऊँ आपको गुस्सा तो बहुत आई... मगर यह चिंदी से मर-गिल्ले से या कहूँ की चार पैसे की औकात वाले इंसान से बात और बहस करने में कोई फायदा नहीं दिख रहा था...मगर खामोश भी नहीं बैठ सकते थे.... मैंने बेचारे से पूछा... यह गाड़ी किसकी है... जो मैंने टेक लगा लिया तो मुझे कायदा कानून समझा रहे हो... | मुझे कोई उत्तर नहीं मिला, वह बेचारा अवाक मुझे देख रहा था, और ऐसे घुर रहा था जैसे मैंने कौन सी गालियाँ दे दी हों... यार मैंने भी ज्यादा मामले को तूल देना उचित नहीं समझा और अपनी जेब से गाड़ी की चाभी निकाली और गाड़ी स्टार्ट की और चुप-चाप वहां से निकल लिए... | वह मर-गिल्ला सा मरियल सिक्योरिटी गर्द देखता ही रह गया... | वैसे मैं एकदम स्योर हूँ की उस कमबख्त ने मुझे मन से गालियाँ दी होंगी.... |

बस एक ही दिन की बात थी यह, उसके बाद से हमेशा वह मुझे रोज मिलता है, अब स्माइल भी देता है और हँसता भी है.... | मैं भी हंसी हंसी में टोक देता हूँ की भैया.... अपनी ही गाड़ी है यार और मैं भले शक्ल से कुछ भी दिखूं मगर हूँ एक इंजीनियर... |

यार वैसे बात तो छोटी सी है, मगर एक नसीहत है इसमें... आप क्या हैं, आपको कितनी इज्जत मिलेगी यह बहुत कुछ हद तक आपके कपडे, आपके रूप पर भी निर्भर करता है... यह सुरक्षा, यह फालतू का आम और खास का भेद आपके लुक पर निर्भर करता है, अब बड़े आदमिओं के बच्चे शक्ल से ही समझ आ जाते हैं.... लो बर्गर फैमिली आ गयी... यह पिज्जा फैमिली आ गयी... और हम लोग... हुह दाल रोटी फैमिली.... छि छि... इनको पीछे बिठाओ... गरीब लोग... आम लोग.... | अब यार इंसान की भी कदर करो और देखो भैया की आम इंसान भी कम से कम इंसान तो है ही ना | रूप और सौंदर्य तो ऊपर वाले की दें है.... उसके ऊपर भेद भाव मत करो यार...............

-देव

2 टिप्‍पणियां:

रवि कुमार, रावतभाटा ने कहा…

वाह देव बाबू...

आपने कितनी अच्छी बात कही,‘गरीब लोग... आम लोग.... | अब यार इंसान की भी कदर करो और देखो भैया की आम इंसान भी काम से काम इंसान तो है ही ना |’

फिर देखे...तो पता चला कि इससे बढिया बात तो पहले ही कह गए हैं आप,...‘मगर यह चिंदी से मर-गिल्ले से या कहूँ की चार पैसे की औकात वाले इंसान से बात और बहस करने में कोई फायदा नहीं दिख रहा था..’

भई मज़ा आ गया...

Dev K Jha ने कहा…

रवि भैया,
दर असल अच्छाई और बुराई दोनों अपने ही अन्दर है ना, और हम लोग हर परिस्थिति को कोसनें में पीछे नहीं रहते... बस यही है सब कुछ...