रविवार, 20 दिसंबर 2009

अबे उठो भाई.........

भाई लोगों आज तो पूरा दिन सोते रहे.... यार सोने में जो मजा है वह दुनिया में किसी चीज में नहीं.. | आधुनिक और व्यवस्थित दिन-चर्या का एक ही तो फायदा है की पुरे सप्ताह का टार्गेट शनिवार और रविवार ही रहता है यार | सो रविवार का दिन आ गया... और नींद पूरी करने का समय आ गया... | सोते सोते कभी यहाँ कभी वहां... पुरे ब्रम्हांड की यात्रा कर ली यार... |
वैसे मैं मुंगेरी लाल का बहुत बड़ा फैन हूँ यार | दिवा-स्वप्न देखने में जो मजा है वह अद्भुत है बंधू...| वैसे आज मैंने खुली आँखों से एक सपना देखा... उसी पर एक छोटी सी कविता लिख रहा हूँ... लीजिये आप लोग भी सुनिए...

हफ्ते भर की आपाधापी के बाद
शनिवार की सुबह
उंघते हुए...
खुली आँखों से
मैंने एक सपना देखा
सपना एक बेहतर कल का
आने वाले समय का

जिसमे एक शांति थी
ना शोर था
ना चिल्लम-चिल्ली थी
ना कोई आतंकवाद,
ना कोई क्रोध और हिंसा का वार
बस एक अपना पन था

आंख खुली तो पाया
बिस्तर पर पड़े थे...
और कानो में शोर था...
उठो आठ बज गए...
कितना सोओगे...
कितना काम पड़ा है...
वह सब कब करोगे...

उठ गए..
और फिर सोचा..
कभी ऐसा भी दिन आएगा
जब अपना सपना सच करूँगा..
एक दिन आएगा
जब अपने लिए जियूँगा... अपने लिए जियूँगा...

सो भैया देखते हैं वह दिन कब आएगा............. | फ़िलहाल तो उठ जाओ और काम पे लग जाओ भाई..........|

-देव

6 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

सही है प्रभु...
सोते रहो...और सपने देखते रहो...

चीज़े अपने आप ठीक हो ही जाएंगी...

मनोज कुमार ने कहा…

अच्छी रचना बधाई। ब्लॉग जगत में स्वागत।

shama ने कहा…

Soti aankhon ke aur jaagee aankhon ke sapne...! Kya baat hai!
Aapke sapne uhane hon..aameen!

kshama ने कहा…

Maza aa gaya padhke...sapne mubarak hon!

KK Mishra of Manhan ने कहा…

्सुन्दर रचना, बधाई

शशांक शुक्ला ने कहा…

सही कहा महाराज