सोमवार, 2 नवंबर 2009

अबे मेरे फटे में टांग मत डालो

भाई लोगों कुछ कर गुजरने के लिए एक जज्बे की ज़रूरत होती है, भले ही वह अपने आप आ जाये या कही से कोई उत्प्रेरक आ जाये... हम भी आज एक उधेड़-बुन में थे.. कोई निर्णय नहीं बना पा रहे थे.. | कभी कभार कुछ फैसले या कुछ विचार बड़े कठिन होते हैं. मगर उन्हें लेना बहुत ज़रूरी होता है... | अब चाहे वह कोई सामजिक परिवर्तन लाने की बात हो या कोई घर परिवार की बात.. | अब साहब कभी कभार आप अपने आस पास अपने हितैशिओं और शुभ-चिंतको से परेशान हो जाते हो... जबरिया सलाह देने और बिना-अर्थ के आपके साथ हम-दर्दी दिखने वालो की आज की दुनिया में कोई कमी नहीं है... |

अब साहब भले कुछ भी हो, कोई साथ आये या ना आये..  हम तो अपना काम करेंगे.. ठाकुर रविन्द्र नाथ टैगोर का एकला चलो रे... और ज्ञान भाई की एक कविता जो आज मेरे मानसिक स्थिति को बहुत अच्छे से बयां कर रही है | आप लोग भी धन्य-वाद दीजिये ज्ञान प्रकाश विवेक साहब का...

तेज़ बारिश हो या हल्की भीग जाएँगे ज़रूर
हम मगर अपनी फटी छतरी उठाएँगे ज़रूर

दर्द की शिद्दत से जब बेहाल होंगे दोस्तो
तब भी अपने आपको हम गुदगुदाएँगे ज़रूर

इस सदी ने ज़ब्त कर ली हैं जो नज़्में दर्द की
देखना उनको हमारे ज़ख़्म गाएँगे ज़रूर

बुलबुलों की ज़िन्दगी का है यही बस फ़ल्सफ़ा
टूटने से पेशतर वो मुस्कुराएँगे ज़रूर

आसमानों की बुलंदी का जिन्हें कुछ इल्म है
एक दिन उन पक्षियों को घर बुलाएँगे ज़रूर.

देव बाबा
३-नवम्बर-२००९

2 टिप्‍पणियां:

परमजीत बाली ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति।

Udan Tashtari ने कहा…

तेज़ बारिश हो या हल्की भीग जाएँगे ज़रूर
हम मगर अपनी फटी छतरी उठाएँगे ज़रूर


--बहुत सही!!