बुधवार, 3 जून 2015

सीएसआर या भ्रष्टाचार

आज हम लोग बात करते हैं सीएसआर की, एक सामान्य व्यक्ति के लिए कहें तो यह कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी का
असली अर्थ सिर्फ इतना है कि हर कंपनी भारत में अपनी आय का एक हिस्सा (2%) सामाजिक कार्यों में खर्च करे और अपना सामाजिक दायित्व पूरा करे। यह दो प्रतिशत यदि हर कंपनी का जोड़ लिया जाए तो एक बहुत बड़ी रकम होगी। आइए समझने का प्रयास करते हैं कि कैसे सरकारी, गैर सरकारी और प्राइवेट कम्पनियाँ इसका कैसे फायदा लेती हैं और लाखो करोडो रुपये बर्बाद कर लिए जाते हैं। इसमें न कहीं समाज आता है, न सरोकार, बस कारपोरेट ही कारपोरेट रह जाता है। भारत में सीएसआर के कुल चार पांच फेज़ कहे जा सकते हैं, आज़ादी से पहले का भारत, फिर निजीकरण के पहले का पब्लिक सेक्टर अंडरटेकिंग और फिर निजीकरण के बाद का भारत। विनिवेश, विदेशी कंपनियों का भारत आना और फिर सब कुछ ग्लोबलाइज़ेशन की आंधी में बह जाना और शुद्ध कारपोरेट कल्चर का जन्म होना। हम कंपनी एक्ट-2013 को आज की स्थिति में आधार मान सकते हैं। इस एक्ट और सेबी के नोटिफिकेशन के अनुसार कोई भी कंपनी जिसकी कुल चल अचल संपत्ति और कारोबार 500 करोड़ से अधिक और सालाना कमाई पांच करोड़ से अधिक हो उसे अपनी तीन साल की अपनी औसत आय का दो प्रतिशत कंपनी एक्ट के शेड्यूल सात में लिखी गई फिलैन्थ्रोपी(एक ग्रीक शब्द) और अन्य सामाजिक कार्यक्रमो में खर्च करना चाहिए। 

अब यह किस प्रकार के कार्यक्रम हो सकते हैं लेकिन प्रमुख तौर पर इनको आप तीन श्रेणियों में बाँट सकते हैं 
सरोकार: किसी गैर सरकारी संगठन के साथ मिलकर किसी सामाजिक कार्य को संपन्न करना। यह सबसे आसान है किसी भी कंपनी के लिए। 
पर्यावरण: ऐसे कार्यक्रम, जिसमे वृक्षारोपण, सड़क बनाना, कोई ऐसा कार्यक्रम जिससे आपके पर्यावरण को लाभ हो।
फिलैन्थ्रोपी: कोई भी ऐसा बिजिनेस मॉडल जो किसी सामुदायिक कार्यक्रम जिससे किसी प्रकार का सामाजिक लाभ हो। यह लोकल, राष्ट्रीय या किसी भी प्रकार का कार्यक्रम हो सकता है। सामुदायिक कार्यक्रम की श्रेणी में पेड़ लगाने से लेकर, स्कूल में पढ़ाना,सड़क बनाना इत्यादि सब आ जाते हैं।

अब आपका ध्यान इन तीनो श्रेणियों में होते भ्रष्टाचार या सरोकार के नाम पर होते मजाक की ओर ले चलते हैं। एनजीओ, सुनकर लगता है कोई गैर सरकारी संगठन जो दिन रात लोगों की सेवा में लगे हुए लोगों का संगठन होगा लेकिन यह एक बहुत बड़ी साज़िशों में लिप्त पाए जाते हैं। कई एक गैर सरकारी संगठनो का सम्बन्ध धर्म-परिवर्तन की गतिविधियों में परोक्ष या अपरोक्ष रूप से रहता ही है। मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी इसमें एक बड़ा नाम है जो हर साल सीएसआर से एक अच्छी खासी रकम कमाते हैं और ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार में लगाते हैं। मुझे नहीं लगता भारत में किसी भी हिंदूवादी एनजीओ को एक भी रुपया सीएसआर के ज़रिये मिलता होगा। सभी विदेशी कम्पनियाँ हैं सो अपने धर्म के प्रसार के लिए वह तत्पर हैं। बाहर से देखनें में यह उतना गंभीर न लगता हो लेकिन यह वाकई में एक गंभीर बात है। मैं मोदी को साधुवाद देता हूं जो उन्होनें इस पर ध्यान दिया और 9000 ऐसे गैर सरकारी संगठन बन्द किए गये। दूसरी और बातों में सेवा की जगह मनोंरंजन, मसलन फ़िलैंथ्रोपी के नाम पर पेड लगानें के लिए कम्पनियों को कर्मचारियों को इकट्ठा किया जाएगा, सबको नई टी-शर्ट मिलेगी.. फ़िर बस में ले जाकर किसी गांव के बाहरी इलाके में पेड लगानें का नाटक किया जाएगा। फ़ोटो खिचेगी और दिन भर की पिकनिक खत्म हो जाएगी। मुझे याद है, एक वाक्या जब स्कूल की दीवाल पेण्ट करनें के लिए एक कम्पनी के कर्मचारी ब्रश और रंग लेकर लगे थे। सभी हुडदंगियों की तरह आये, ब्रश और पेण्ट के साथ अपनी अपनी फ़ोटो खिचाई और सारी गन्दगी फ़ैला के भाग लिए। फ़ोटो खिची और बस नाटक खत्म हुआ। उसके बाद ज़ोर शोर से इस नाटक का इन-हाऊस बुकलेट में प्रचार किया जाएगा। उस बुकलेट का खर्चा भी आपकी सीएसआर के पैसे में ही आ गया। यह फ़ोटो खिचानें मात्र की नौटंकी को सीएसआर कहना मेरे हिसाब से वैचारिक दीवालियापन है।

टैक्स की चोरी के लिए इसका बहुत अच्छा उपयोग किया है कई एक कंपनियों ने. भारत की ओएनजीसी से लेकर अमेरिका के एप्पल और वॉलमार्ट तक सभी ने इसका भरपूर लाभ लिया है और जो पैसा सामाजिक कार्यक्रम में खर्च होना चाहिए था उसको अपने फायदे के लिए इस्तेमाल किया है। 

ओएनजीसी केस की लिंक यह रही: http://www.indiacsr.in/en/tag/csr-fraud-in-ongc?print=pdf-page
कोका कोला केस की लिंक यह रही: http://www.indiaresource.org/campaigns/coke/2008/neutrality.html
सत्यम केस भी देख लीजिये : http://infochangeindia.org/corporate-responsibility/analysis/satyam-and-the-truth-about-csr.html

यह कुछ लिंक देखकर शायद आप समझ रहे होंगे कि यह शायद फालतू की चीज है, लेकिन ऐसा नहीं है। कई एक कंपनियां अपना दायित्व पूरा भी कर रही हैं। दर-असल इस पूरे मामले की ओवरहालिंग की ज़रूरत है और कुछ नए दिशा निर्देश जारी करने की ज़रूरत भी है।

होना क्या चाहिए:
  1. यह सीधे सरकारी योजनाओं से जुड़े और नौटंकी बंद करें
  2. हर कंपनी को आदेश दिया जाये और कंपनियों के समूह को उस इलाके के अस्पतालों और सरकारी स्कूलों को गोद लेने को कहा जाए, अस्पताल का पूरा खर्च यह कम्पनियाँ उठाएं और उसमे गरीबो को रियायती दर पर इलाज़ मिले। सरकारी स्कूल की पूरी रखरखाव, किताबों, फर्नीचर सभी का खर्च इन्ही कंपनियों की ज़िम्मेदारी हो।
  3. इनके पूरे खाते का हिसाब इनकी वेबसाइट पर सार्वजनिक हो
  4. अगर यह किसी वृक्षारोपण जैसे कार्यक्रम का हिस्सा बनते हैं तो फिर उसकी पूरी रखरखाव की ज़िम्मेदारी भी लें। 
  5. कंपनियों की सीएसआर गतिविधियाँ आरटीआई के दायरे में आएं
  6. जो भी इसका पालन न करें उसका लायसेंस रद्द कर दिया जाए

मैंने इस मामले पर एक पत्र प्रधानमन्त्रीजी को लिखा है, आशा है वह इस पर ध्यान देंगे। भारत जैसे देश में जहाँ आज भी उन्नीस करोड़ लोग भुखमरी के शिकार हैं, आप नौटंकी फैला कर फिलैंथ्रॉपी के नाम पर फाइव स्टार में पार्टी करें तो उस पर रोक तो होनी ही चाहिए। देखते हैं मोदीजी का क्या जवाब आता है।

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सच है, सीएसआर के नाम पर क्या कुछ नहीं हो रहा है।