शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

जय हिन्दुस्तानी नेता...

नमस्कार मित्रों, 

मेरे घर के पास एक नेताजी हैं, जो कांग्रेस के प्रचंड समर्थक हैं, और इस कदर समर्थक हैं की उन्होनें अपने आचार विचार, व्यक्तिगत जीवन में कांग्रेस शामिल कर लिया है। अडियल और व्यक्तिवादी सोच.... किसी भी बहस में पडेंगे तो फ़िर उनकी हां में हां मिलाईए तो ठीक नहीं तो बेमतलब की बकर बकर में पडकर आपका दिमाग चाट लेंगे...  मैं हमेशा जीवन में वैचारिक परिपक्क्वता पर जोड देता हूं लेकिन यह मित्र व्यक्तिगत वाद में ही जीते हैं.... मुझे हाल फ़िलहाल ही मालूम चला की यह नेताजी हैं, तो फ़िर मुझे उनकी सोच और जीवन के प्रति उलझे हुए रवैये का अंदाज़ा हुआ.... यह शख्स नवी मुम्बई में निवास करते हैं और अपने आप को बिल्कुल चौधरी समझते हैं..... हर मसले की पंचायत करनें आ जाते हैं..... वैसे तो मैं कभी किसी से उलझता नहीं लेकिन आज सुबह उनकी बहस मुझसे हो गई.... हुआ यह की दो मज़दूरों के बीच मज़दूरी का विवाद था... दोनो साला जीजा आपस में उलझे हुए थे, वहां पंचायत करनें आ गये यह कांग्रेसी कुर्ता पैजामा धारी.... और लगे बवाल काटनें..... हम भी बाहर निकले... हम खाली इतना पूछ लिए की आपका परिचय? वह बोले हमें नहीं जानते, हम ये हैं... हम वो हैं.... और फ़िर लगे हम पर शान मारनें... हम इस वार्ड के हैं....  फ़लां फ़लां..... हम बोले आप जिस प्रकार से अपनी शेखी बघार रहे हैं उस हिसाब से तो आप मुझे कहीं से भी मामूली नेता नज़र नहीं आते (बड़े नेता... बड़ी दबंगई)... फ़िलहाल के लिये तो आप यहाँ से बाहर निकलें और अपनी नेतागीरी बाहर दिखाएं..... दोनों मजदूर उत्तर भारतीय थे और बिना मतलब का मुद्दा बन रहा था... हमने दोनों को समझाया और मामला निपटवाया... लेकिन ये नेता कुछ तो थे और अपने दंभ और मद में भी थे और हमारी इस प्रकार के उत्तर से पिनके भी थे...  हमने भी कोई तूल देना ठीक नहीं समझा और उन्होनें भी खिसक लेने में ही भलाई समझी..... बहरहाल हम तो केवल इतना ही सीखे की यह नेता लोग अपनें आप को समझते क्या हैं..... कैसा दम्भ, कैसी दबन्गई.... जनता अपनी पे आ गई न तो एक दिन में सडक पे ला देगी.....  

देखिए देश में लोक तंत्र है.... हर किसी को नेता बननें का पूरा अधिकार है.... पहले नेता होते थे तो समाज को एक दिशा प्रदान करते थे, नेताओ के स्लोगन स्कूल कालेजों की दीवारो पर चिपकाए जाते थे, नेता समाज के प्रति सेवा भाव के लिए समाज का सम्मान पाते... लेकिन..... लेकिन अब नेतागीरी का मतलब है दबंगई.... लोगो को दबानें की क्षमता... अब हिन्दुस्तानी नेता बातूनी हैं.... खास कर जो सत्ता में है वो सत्ता मद में चूर है.... सत्ता  जनता को चूसने में व्यस्त है... और जनता के पास अपने आप में ही उलझे रहने के लिए की कोई और रास्ता उसको दिख ही नहीं रहा...

क्या करेंगे... जय हिन्दुस्तानी नेता... फिर मेरा भारत तो महान है ही...

5 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

पहले के नेता समाज को दिशा देते थे ... रास्ता दिखाते थे ... आज के समाज को चाहिए कि समय आने पर उन के अहसानों का बदला चुकाए और आज कल के नेताओ को दिशा देते हुए ... रास्ता दिखाए !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

भगवान करे देश को शुभदिन मिलें..

S.N SHUKLA ने कहा…

सार्थक और सामयिक पोस्ट, सादर.
कृपया मेरे ब्लॉग"meri kavitayen" पर भी पधारकर अपना स्नेहाशीष प्रदान करें, आभारी होऊंगा.

रविकर ने कहा…

आगामी शुक्रवार को चर्चा-मंच पर आपका स्वागत है
आपकी यह रचना charchamanch.blogspot.com पर देखी जा सकेगी ।।

स्वागत करते पञ्च जन, मंच परम उल्लास ।

नए समर्थक जुट रहे, अथक अकथ अभ्यास ।



अथक अकथ अभ्यास, प्रेम के लिंक सँजोए ।

विकसित पुष्प पलाश, फाग का रंग भिगोए ।


शास्त्रीय सानिध्य, पाइए नव अभ्यागत ।

नियमित चर्चा होय, आपका स्वागत-स्वागत ।।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

जय हो नेता जी की!