मेरी प्यारी दोस्त चली गयी...
बहुत प्यारी थी...
मेरी कलाई पर कितनी सजती थी...
हमें हर जगह समय पर पहुंचाती थी...
बस पकड़ने की दौड़ में
सुबह नौ दस की लोकल पकड़ने की होड़ में
हमेशा हमें सही समय बताती.....
हाँ हमारी टाइटन की प्यारी सी घडी....
यार भावनाएं जुडी हुई थी इस घडी से....
ससुरा अपनी कमाई से अपने लिए ली हुई पहली चीज थी....
आज खामोश है....
मन उदास है....
मगर क्या करें....
जो आता है.... वो तो जाता है ना....
और फिर जाने वाले को कौन रोक पाता है....
-देव
10 टिप्पणियां:
बहुत बुरा हुआ भैया ..............बहुत बुरा हुआ !! :-(
बहुत बुरा हुआ भैया ..............बहुत बुरा हुआ !! :-(
देख रहे हो कितना सदमा लगा है ...............एक ही कमेन्ट २ २ बार दे रहा हूँ !!
आपने इस कविता में अपने-आपको बहुत अच्छी तरह से बखूबी ढ़ाला है, और ऐसा लग रहा है कि आप बोल रहें हो या नहीं, आपकी कविता ज़रूर बोल रही है।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति .. ललित जी ने अपनी प्रेमिका से बिछुडने का कष्ट सह लिया .. आप भी दोस्त के बिछुडने का गम सह ही लेंगे !!
क्या बिलकुल सटक चुकी है ... आपको यकीन है न ... कहीं कोई उम्मीद नहीं है क्या ... डॉक्टर (घडी मेकेनिक) के पास ले गए थे क्या ... नहीं तो अभी ले जाओ ... हो सकता है कि कोई चमत्कार हो जाये ... आजकल हार्ट (बटरी) ट्रांसप्लांट जैसा कुछ होता है ... देख लो ... शुभकामनायें
एक उम्दा पोस्ट के लिए बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
आपकी चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं
"बिछड़ कर मिल पाया है कौन?"
.... आपकी घडी खोने पर सोचा, थोड़े आँसू बहाऊँ घड़ियाली.
टप, टप, टप . . . . . .
dev ji,aapki parda pratha wali post padhi thi jab comment kar rahi thi to kuch problem aa rahi thi.ab to post hi gayab hai?aapne hi likhi thi na?bahut achha topic chuna tha aur likha bhi badhiya tha kahe gayab kar di?
अरे देव भईया....अब काहे एक ठो घडी के लिए टीपना चुआ रहे हो. बियहवा में जो मिला है ऊ पहिन लो न. हा न ता ....
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