शनिवार, 19 जून 2010

लो बबुआ देव बाबा बनारस पहूंच गये




लो बबुआ देव बाबा बनारस पहूंच गये। वईसे ट्रेन की यात्रा हमेशा से ही अलग अनुभव लेकर आती है और इस बार की यात्रा भी कोई अपवाद नहीं थी। ममता जी की असीम अनुकम्पा से देव बाबा पूरे चौबीस घंटे की देरी से मुम्बई में ही फ़ंसे थे और यात्रा इस बार स्लीपर की थी सो अपनें मनोभावों को अपनी पिछली पोस्ट से जाहिर भी कर चुका था। तो यह लीजिए दास्तानें रेल.... या कहिए की दास्तानें स्लीपर क्लास.... ट्रेन का नाम.... दादर बनारस एक्सप्रेस.

दादर कुछ समय के पहिले ही पहुंच गये थे सो दादर के वेटिंग रुम को देव बाबा नें अपना प्रथम ठिकाना बनाया. भई वाह क्या साफ़ सुथरा वेटिंग रुम था गुरु। ज़िन्दगी में आज तक कभी इतना साफ़ सुथरा वेटिंग रुम नहीं देखे थे। अबे पोछा भी फ़िनाईल से लगा रहा था और वह भी अच्छी क्वालिटी वाला। एकदम चेहरा दिखाई दे रहा था भई। अति सुन्दर और जोरदार। गाडी बारह बजकर तीस मिनट पर थी सो देव बाबा बारह बजे प्लेटफ़ार्म पर पहुंचनें के लिए निकले। बारह बजे प्लेटफ़ार्म पर निकले तो फ़िर अनाऊंसमेट हुई की गाडी मात्र एक घंटा देर है... अब भाई भारतीय रेल के लिए एक घंटा कौन सी भारी बात है यार.. ई त नारमले है ना।

प्लेटफ़ार्म का सीन बहुत खराब था भाई, शशि थरुर ठीक था... वह जनरल क्लास को कैटेल क्लास बोलकर फ़ंस गये थे बेचारे। गलत का बोले ई चित्र देखिए... लाईन लगाए हुए जनता कौन क्लास की है... पुलिस वाला डंडा मार मार कर लाईन मेनटेन किये हुए है। बहरहाल कुली और पुलिस वाला मिलकर कितना का धांधली किया होगा उसका कोई हिसाब नहीं होगा। यहां की ट्रेन में ट्रेन आने के पहले जनरल क्लास की जनता को कतार बद्ध कर दिया जाता है और फ़िर पुलिस का डंडा चलता है अगर लाईन तोडो तो। देखिए इनकी कुछ तस्वीरें देखिए...





भैया मन हुआ की रात के बारह बजकर पैतालीस मिनट पर कुछ गर्मागर्म चाय काफ़ी हो जाए तो फ़िर क्या बात हो। नेस्कैफ़े का यही वह दुष्ट काऊंटर था जिसनें देव बाबा को काफ़ी बताकर पानी पिला दिया। यह लीजिए देखिए काऊंटर और यह रही काफ़ी।



वईसे यहां यह केवल शुरुआत ही थी भाई, असली मजा तो डिब्बे के अन्दर था ना यार। दर-असल डिब्बे मे अन्धेरा कायम था सो देव बाबा और हमरे भैया प्लेटफ़ार्म पर ही डिब्बे में उजाले की प्रतीक्षा में थे। उजाला हुआ तो फ़िर सामान लेकर डिब्बे में घुसनें का प्रयास किया गया। यार एक बजे रात में समझ नहीं आ रहा था की यहां कित्ते यात्री हैं और कित्ते उनको छोडनें वाले। पूरा डब्बा कचर कचर... एकदम बेकार... ई पुरबिया कम्यूनिटी से त हमरी पहचान पुरानी है मगर यार हद की भी हद होती है ना... मगर इसकी तो कोई भी हद नहीं थी। अपना सामान फ़िट कराने के लिए लेवल २ की गुंडई करनी पडी। बस दो चार को धकियाए और दो चार को गरिआए... एकदम गुंडई दिखा दिये देव बाबा आज। अब साहब डिब्बे की हालत के लिए क्या कहूं... कम से कम दो सौ लोग... उनमें से बहुमत बेटिकट और वेटिंग टिकटधारियों की। और वह भी फ़ुल समान के साथ। हमरे सामनें तीन लोग (एक्को टिकट कन्फ़र्म नहीं) के पास पांच बैग, एक पेटी, दो बडी बोतलें(जईसे मुम्बई का पानी बनारस तक चलाएंगे) और कम से कम पांच पोलोथीन बैग था। उनमें से एक महानुभाव की मूंछे भई एकदम डाकू मलखान सिंह जैसी। पूरा डब्बा कोलाहल और चीत्कार से गूंजायमान था। देव बाबा की बर्थ ६० और ६१ नम्बर की थी सो एक नीचे और एक बीच की सीट के निचे बहुत मुश्किल से अपना बैग रखे. लैपटाप बैग को उपर हुक पर लटकाए और फ़िर यात्रियों की दशा देखे और फ़िर अपने दिल को समझाए.."भैया आल इज़्ज़ वेल"। चलो कोई बात नहीं।

अब भैया राति को तो सबको सोना था और सारे लोग सोनें की तैयारी करनें लगे। भैया को बीच की बर्थ पर चढा दिये और अपनें निच्चे की बर्थ पर मारामारी करनें के लिए लेट गये। रात में हमको फ़ील हुआ की हमरी बर्थ के बहुमत हिस्से पर कोई और विद्वान लेटा हुआ है। डेढ पसली के देव बाबा की बर्थ पर खली की साईज़ का एक महा-पुरुष लेटा हुआ था, अब क्या किया जाए... लतिआए उसको... तो जनता बोली की "थोडा एडजस्ट कीजिए" हम कहे की भैया सीट हमरी... और बदमासी ना दिखाओ... पिछवाडा टिकानें की जगह मांगी थी तो उतनें में ही संतोष ले लो। अबहीं यदि हमरी सीट कब्जिआनें का प्रयास करोगे तो फ़िर हम भी गुंडई दिखाएंगे। बाप बाप चिचियाते हुए सुबह हुई और सुबह की पहली किरण भी कोई शान्ति का संदेशा लेकर नहीं आई। हमरे बगल वाले कूपे में लोग कानून कानून बतिया रहे थे, एक खेमा कह रहा था की आपको सुतै नाहीं देंगे, और दूसरा खेमा कह रहा था की यह हमरी सीट है इसमें हम जित्ते आदमी चाहें बईठाएंगे। बस दोनो कानून की धमकी दे रहे थे और दोनो एकदम मुम्बईया स्टाईल में झगडा कर रहे थे। मुम्बईया स्टाईल में केवल हुल्ल-पट्टी देते हैं, दुनू पार्टी खाली गरियाता है। कोई किसी को हाथ लगानें की कोशिस नही करता । हम लोग तो ताव दे रहे थे,

देव बाबा के शब्द.... रे मार मार... हुर्र-हुर्र-हुर्र....... मगर कोई पार्टी झुकी नहीं और थोडी ही देर में दोनो पार्टियों की उर्ज़ा कम पड गई। और फ़िर दोनो दल शान्त हो गए।
अब साहब इसके आगे की दास्ता सुनिए...इन विद्वानों की चर्चा के मुद्दे...

मोबाईल बैलेन्स: ई सरवा हमार इन-कमिंग के पांच रुपईया काट लेलक. (बात करब त पईसा ना कटिहैं)
बीजेपी वर्सेस कांग्रेस: बीजेपी के कोनो नेता नईखे हौ... अटल बिहारी इमानदार रहा ओकरे पर भरोसा रहा अबहीं कोनो नेता नाहीं हौ
ट्रक ड्राईविंग के नुस्खे: दर-असल सभी के सभी ट्रक ड्राईवर थे सो सारे लोगों के लिए ट्रक ड्राईविंग फ़ेवरेट टापिक था. अर्रे हमार नवका ट्रक, मारुति से ज्यादा नीक स्टेयरिंग बा हौ... एक आंगुर के नोक पर पूरा गडिया घुमि जाला। भगवान जानें कौन से ट्रक की स्टेयरिंग व्हील कौन सी मारुति से बेहतर है। मारुति-८०० का तो पता नहीं मगर बाकी गाडियों की स्टेयरिंग व्हील बहुत रिस्पांसिव होती है यार। ई लोग सबका ट्रक मारुतिया पर भारी रहा।
एक और विद्वान जिसका पेंट किसी केमिकल से जला हुआ था, उसनें मुम्बईया पुलिस से बचनें के अजीब नुस्खे बताए भाई। गजब का गूढ-रहस्य मालूम चला।

ट्रेन लेट होना और फ़िर कितना समय में पहुंची की बकर बकर जोरो पर थी। अरे अबहिया त सिन्गले ना मिली हौ... दुइ घंटा ऊ स्टेशन फ़ेर दुई घंटा फ़लां... ना जानें कईसी बेकार की कैलकुलेशन... जईसे इनके ही जोर से ट्रेनिया चली और इनके ही कैलकुलेशन से ट्रेनिया रुकी।

अब साहब खली नें करेला का सब्ज़ी और पूरी निकाला, कसम से जो खुशबु आई उसके बारें में बयां नहीं कर सकता भाई। लार टपक गई और बहुत मुश्किल से थूक और पानी गटक कर अपनें आप को काबू में किया। गज्जब खुशबूदार और मसालेदार भरवां करेले थे यार। खाए पिये और फ़िर सुत्ते की बारी आई त फ़िर कानूनी डब्बा हरकत में आ गया। लगा इस बार लोग मुम्बईया हुल्ल्बाज़ी से बनारसिया फ़ाईट पर आयेगा.... मगर इसबार भी खाली चिचियाए कुछ किये नहीं। दुर्र..... बकलोल सब... मारौ करना नहीं आता है..

एक आदमी गलपिचकू.. मरसिड्डे सा एकदम मरा मरा सा... (शायद मुम्बई में रिक्शा चलाता था) अपनी स्तुति की गाथा गानें में अति व्यस्त था। वहां ई मारा मारी किए... बाईक वाले को पटके... और ताज्जूब वाली बात यह की सब लोग उसका सुन भी रहे थे ।


बहरहाल जबलपुर पहुंचे और फ़िर वहां कुल्हड वाली चाय का आनन्द लिया। दिन का लंच स्टेशन की ही सुविधा से हुआ। रेलवे में ठेके वाले जो खाना खाना चिचियाते हैं... खाने की प्लेटों को शौचालयों के बीच की खाली जगह पर रखते हैं.. घिन के मारे उलटी आनें जईसा हो गया था और यहां जनता उसको स्वाद ले लेकर खा रही थी। उफ़्फ़..

अब साहब ट्रेन का ज़िक्र हो तो फ़िर उसके इंटरनेशनल स्टाईल के शौचालय का ज़िक्र ना करें तो फ़िर कम होगा। यार मेरी आज तक समझ में नहीं आया की यह पुरबिया टायलेट सीट पर उल्टा काहे बईठता है। एकदम नरक कर देता है। जबलपुर में ट्रेन का सफ़ाई हुआ तो फ़िर उसके बाद कुछ सोचनें लायक हुआ नहीं तो फ़िर हाल बुरा हो जाता यार।


खैर झगडा यहां भी होना था और हुआ भी... ए कौनें अन्दर बन्द हौ.. दुई घंटा स बन्द हई दरवज्जा। इहां लाईन लग गईल हौ। खोला हौ मरदवा....

राम राम चिचियाते हुए किसी तरह रात हुई और ट्रेन सतना पहुंची। भैया कोई हमको यह बताओ की सतना में अंडो की खेती होती है क्या... सतना के प्लेटफ़ार्म में एक ही आवाज गूंज रही थी...
आमलेट... आमलेट... टोटल वेजीटेरियन देव बाबा के लिए कुछ खानें लायक मिला नहीं सो चाय और वडा से काम चलाए...


बारिश का एक्को बूंद का नामोनिसान नहीं था और दिन भर गर्मी और तेज़ हवा से देह पहिले ही झुरसा गया था। वईसे में थोडा खिडकी से सर टिका लिए और हवा का अनुभव लेने लगे। इत्ती देर में कुछ गीला गीला लगा... सोचा कुछ बूंद गिरा शायद... मगर नहीं भईया ई त उपरै वाले के मुन्ना के कमाल रहल....
देव बाबा :- गुर्र गुर्र उफ़्फ़ उफ़्फ़..... ई का गजब हुआ बे.

मोबाईल का जीपीआरएस चल रहा था तो टिविटर पर संदेश भेज कर दुनियां से सम्पर्क बनाए रखनें का प्रयास कर रहे थे। थोडी देर बज़्ज़पुरम(गूगल बज़्ज़) पर स्तुति और विवेक रस्तोगी भाई से बतियाए भी। अब का करेंगे.... थोडा प्रसंग उनको भी सुनाए... अबे भारतीय रेल गज्जब है यार... लोगों को नज़दीक लानें के लिए रेलवे का योगदान सराहनीय है। एक डिब्बे में जिसकी केपेसिटी ७२ लोगों की है वहां कम से कम २०० को फ़िट किये थे... देखिए ई लोगों को नज़दीक लाना नहीं तो और क्या है। टीसी... चेकर... सब भग लिया था। और पूरा डब्बा नरक था। सारे लोग चिचिया रहे थे और चिल्ल पों के बीच सोना ना के बराबर ही हुआ।


सुबह पांच बजे बनारस कैंट पहुंचे। फ़िर एक और फ़ाईट शुरु हुई... बनारस से बाबतपुर आनें की जद्दोजहद। बनारस में आज पुर्वांचल यूनिवर्सिटी की बी एड की परीक्षा थी और कैंट डीपो पर अराजकता का माहौल था.... कोई भी बस नहीं और कोई भी रिक्शा वाला तैयार नहीं हो रहा था। यार मेरा दिमाग यह देख कर खराब हो गया की कोई सूचना देनें वाला नहीं था... कोई बस का कंडक्टर नहीं कोई बस का ड्राईवर नहीं... केवल बसें और यात्री... मतलब प्रशासन का कोई नामोनिशान नहीं था यहां। यार सरकारी अमले को तो यह जानकारी होगी ही की किस किस सेंटर पर कितनें परीक्षार्थी हैं और फ़िर उनके जाने के लिए अतिरिक्त व्यवस्था की जा सकती थी। कम से कम सूचना देनें के लिए एक पूछताछ डेस्क लगाया जा सकता था। इस प्रकार से सरकारी बसों को अनाथा छोड देना कौन से प्रकार की अकर्मणयता थी भगवान जानें।

देव बाबा नें डायरेक्ट रिक्शा लिया और उसमें तीन परीक्षार्थिओं को स्थान दिया। देव बाबा, बडके भैया और तीन विद्यार्थी। सोचे कम से कम राज्य सरकार सो रही है, तो हम ही कुछ समाज सेवा करें और कम से कम तीन बन्दों को तो सेंटर पर समय पर पहूंचा दें।


इस पूरी यात्रा से एक बात तो सीख गये, हिन्दुस्तान में ना तो केन्द्र सरकार को आम जनता की फ़िक्र है और ना ही राज्य सरकार को। बस सारे वोट की राजनीति में आते हैं और ट्रेन के यात्री या यह विद्यार्थी किसी भी स्थिति में डायरेक्ट वोटर नहीं है ना और इनके भले बुरे से ना केन्द्र को फ़र्क पडता है और ना ही राज्य को।

सो भैया हिन्दुस्तान में जीना है तो फ़िर अपने हिसाब से जीना सीख लो। सरकारी सहारे पर रहोगे तो ना परीक्षा दे पाओगे और ना ही कायदे से सफ़र कर पाओगे।

-देव

7 टिप्‍पणियां:

E-Guru _Rajeev_Nandan_Dwivedi ने कहा…

दम बाँधे, सांस रोके ई वृत्तान्त सुनते रहे. एक लाइन नहीं छोड़े पर देव बाबा बाबतपुर काहे लिए जाना था जी !!
ई भी त स्पष्ट करना था न !
ऊपर जोड़ दीजिए.
वैसे बहुते मजेदार बनारसिया शैली में लिक्खे हैं, मज़ा आ गया जी.

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 20.06.10 की चर्चा मंच (सुबह 06 बजे) में शामिल किया गया है।
http://charchamanch.blogspot.com/

शिवम् मिश्रा ने कहा…

चलो भैया, जैसे भी सही घर तो पहुँच गए ना ! अब लग जाओ २१ की तैयारी में ! बहुत बहुत शुभकामनाएं ! घर में सब को मेरा प्रणाम कहना !

बेनामी ने कहा…

रोचक शैली में अद्भुत वर्णन

अपन तो 21-25 के वादे पर टिके न रह सके :-(
कुछ अनचाहे काम आ पड़े। कार्यक्रम एक सप्ताह आगे बढ़ गया!

अग्रिम बधाई व शुभकामनाएँ

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

सो भैया हिन्दुस्तान में जीना है तो फ़िर अपने हिसाब से जीना सीख लो।

रोचक प्रस्तुति

राम त्यागी ने कहा…

nice, kitana lamba likh dala, i thought you are going to write about your marriage par tum to kalaakaar nikale ....

kaheen bhaanvar padate mein laptop lekar mat baith jaanaa :)

chal enjoy ..i tried calling u but ur phone was switched off :(

kuch haldi wale photo bhi bhejo

बेनामी ने कहा…

आज पहली बार चिट्ठाचर्चा के माध्यम से आपके ब्लौग तक पहुँचा भई मस्त लिखते हैं आप तो। मज़ा आ गया। दिन की अच्छी शुरुआत हुई। शादी के लिए बधाई हो।