हमरा एक दोस्त आज हमको बोला, "अबे सुने की नहीं, फुटबाल का वर्ल्ड-कप शुरू हो गया"
हम कहें तुम काहे कूद रहे हो बे, कऊन हिन्दुस्तानी के टीम खेले जाए रही है ओमें...
ना मालूम हिन्दुस्तानी कहे खुश हो रहे हैं, अबे कौन तीर मार रहे हो फ़ुटबाल वर्ल्ड कप में । धिक्कार है, इत्ता बड़ा हिंदुस्तान जहाँ एक से एक टांग खीचने वाले..... ससुरा एगारह आदमी नहीं मिलता इनको..... और बेकूफ जईसे टीवी के सामनें उल्लू बनके बईठेंगे.... क्रिकेट टीम कईसे नाक कटाया देखे.... ज़िम्ब्ब्बे कईसे पीट के किनारे किया इनको.... बडी मार मारा.... अब ई फ़ुटबाल के मैच देखेंगे.....
हमरे बाउजी फ़ुटबाल के अच्छे प्लेयर थे, बिहार से खेलते थे.... फ़ुटबाल का दिया उनको? क्रिकेट खेलते त आज हम भी मशहूर होते ना... ई हिन्दुस्तान हई मालिक इहां खाली क्रिकेट के जोर बा। फ़ुटबाल, हाक्की सब में डब्बा गोल.
ओलम्पिक में एक मेडल मिला... टीवी चिचियानें लगेगा... सबसे आगे हिन्दुस्तानी.... चक दे ईंडिया..... नक्शा पे मुश्किल से दिखाई देनें वाला केन्या और घाना जैसा देश भी पांच पांच गोल्ड ले आता है। और ईहां एक्के मेडल आनें पर चिचियाना शुरु..... अबे कुछ शर्म करो बे.
वैसे जो लिखे वह मजाक का विषय नहीं है, यह जबरदस्त चिंता की बात है जो और हिन्दुस्तानी हाकी और फ़ुटबाल आज जिस भी दशा में है... उसके ज़िम्मेदार थोडे थोडे हम सभी लोग हैं। अभी ध्यान देनें की ज़रुरत है की बाकी खेलों की तरफ़ भी ध्यान दिया जाए और भारतीय ओलम्पिक एसोशियशन को थोडी स्वायत्तता दी जाए, ताकी यह सरकारी झमेलों में ना फ़ंस कर अपने निर्णय खुद ले और फ़िर ओलम्पिक के बाद मुंह बाए आनें वाले हमरे खिलाडी कुछ मेडल भी ला पाएं।
हाकी और फ़ुटबाल का भी कुछ ऐसा ही करना पडेगा भाई.... ताकी फ़ुटबाल का विश्व कप देखनें में देव बाबा को भी ईंटरेस्ट आए...
-देव
10 टिप्पणियां:
भाई जब तक कलकत्ता में थे फूटबाल से बहुत लगाव था................अब १३ साल हो गए मैनपुरी आये हुए तो लगाव भी खत्म सा है ! वैसे बात पते की कहे हो! अपने यहाँ राजनीती का खेल सब खेलो पर भारी पड़ जाता है !
sirji baat to aapki sahi haipar media jise exposer dega wahi khel to chalega na...varna aam aadmi uske paas waqt kahan hai koi khel samajhne ke liye..jo pata hai use ki badhiya hai wahi badhiya rahega jab tak uske saamne doosri chamkeeli cheez na rakh do...
बहत सही व्यंग्य....
बात तो सही कह रहे हो देव बाबू
देवबाबा ! हमको तो रत्ती भर भी रूचि नहीं है इस खेल में.
उलटे जब कोई चर्चा में छेड़ देता है तो झुलुस जात हैं !!
अरे का करें भाई, हमको तो यही नहीं समझ में आता है कि बल्ला तो है ही नहीं, खेलेंगे कैसे !!!!!!
बात तो सही कह रहे हो देव बाबू
अपने भारत में राजनीति का मैच जबरद्स्त होता है, जो पूरी दुनिया में शायद ही कहीं ओर होता हो, अरे फ़ुटबाल में तो खेलने के लिये इगारह लोगों की जरुरत होती है, पर राजनीति एक ऐसा खेल है जिसमें कम से कम दो और ज्यादा से ज्यादा कितने भी लोग हों, पर खेल का मजा उतना ही आता है।
शोचनीय विषय है यह भारत की प्रतिबद्धता के लिये !
बिल्कुल सही कहे हैं:
जो लिखे वह मजाक का विषय नहीं है, यह जबरदस्त चिंता की बात है
बहुत चिंता की बात है ...इधर अमेरिका/यूरोप में हर एक मील पर अभ्यास केंद्र है, फ्री रोशनी के साथ, रात में भी हम ऑफिस के बाद खेलने जा सकते है और हमारे यहाँ सिर्फ रोशन है नेताओं की दूकान
शायद ब्लॉग का ले आउट नया लाये हो ?
चलो ...लिखते रहो ...कुछ तो होगा ही ....
bahut hi bebaki se aapne apni bat kahi, padhne me hasye jaroor he , magar iske peeche chhipa dard, bakai bhayanak he
badhai dost , likhte rahiye, kabhi to ye soya desh jagega, aap apna kam jari rakhiye
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