शुक्रवार, 25 मार्च 2016

हिन्दू धर्म, आध्यात्म और हम

मेरे न्यूयॉर्क ऑफिस में एक व्यक्ति उसी गाँव का है जहाँ से मदर टेरेसा हैं, वह अति मधुर स्वभाव का और भारतीय संस्कृति के प्रति बहुत आदर स्वभाव रखने वाला व्यक्ति ज़ेवियर मुझसे बहुत सी बातें करता है। लगभग साठ वर्ष की आयु होने के बाद इन सभी की जानकारी लेना और संस्कृतियों के बीच के अंतर को समझने का उसका प्रयास मुझे बहुत अच्छा लगा। कल ज़ेवियर ने पूछा, आखिर इतने धर्मो के बावजूद भारत में कभी कोई धर्मयुद्ध क्यों नहीं हुआ, अब छोटी मोटी घटनाओं को यदि नज़रअंदाज़ किया जाए और यदि हम एक आम भारतीय के मत को जाने तो हम समझ सकते हैं कि आम तौर पर भारतीय सहिष्णु, देश के प्रति थोड़े से लापरवाह किन्तु सुषुप्त अवस्था में बहुत ऊर्जा समेटे हुए हैं। भारतीय हनुमान के समान हैं जो अपनी शक्ति का स्मरण स्वयं नहीं कर पाते परंतु जब उन्हें कोई प्रेरित करता है (अच्छी या बुरी ओर) तो वह क्रांति को तत्पर हो उठते हैं। मैं स्वयं मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटीज़ और मदर टेरेसा के काम काजी तरीकों का आलोचक हूँ और मेरे विचार से इस संगठन की गतिविधियों पर निगरानी होनी चाहिए, ख़ास तौर पर धर्मान्तरण पर। विश्व समुदाय और वेटिकन सिटी दस-चालीस की खिड़की में भारत को एक बड़े टारगेट के रूप में लेता है और भारत की वोट बैंक की राजनीति उसमे उसकी मदद करती है। कभी एनजीओ की आड़ में तो कभी चमत्कारों की आड़ में भोले भाले भारतीयों को मूर्ख बनाते हुए यह अजीब सी हरकतें करके भी पूर्व की भारतीय सरकारों के समर्थन से आज तक सक्रिय हैं। 

उसका एक और कारण यह है कि बहुसंख्यक हिन्दू असंगठित है और वह बहुत सी बातों से अनजान हैं। भारत में इन संगठनों के इतना सक्रिय होने की एक वजह यह भी है कि भारत हमेशा एक बहु-धार्मिक और सबको साथ लेकर चलने वाला सहिष्णु समाज रहा है। विश्व में जब सभी पंथो का यह मानना है कि उनके शास्त्र, बाइबल और क़ुरान इत्यादि ही अकेले और अंतिम सत्य का खज़ाना हैं और जो उनकी इस अनंत(?) सत्यता को नहीं स्वीकार करते उन्हें 'पगन' या 'काफिर' कहते हैं। उनके इस विचार से इतर हिंदू धर्म अन्य धर्मों को एक अलग पंथ की तरह देखता है और उनकी मान्यताओं में कोई अतिक्रमण नहीं करता। वह उनके साथ भी अपनी मौलिकता को बनाये हुए, वैज्ञानिक सोच के साथ आगे बढ़ता रहता है। हिन्दू धर्म का दर्शन, अन्य धर्मों से थोडा अलग है क्योंकि यह मौलिक तौर पर आध्यात्म से जुड़ा हुआ और मानवीय मूल्यों और आदर्शों पर आधारित है। कर्मयोग सिखाती हुई गीता, मानवीय आदर्शों की रामायण, सांख्यिकी सिखाता हुआ सांख्यशास्त्र। गौर करने वाली बात यह भी है की भारतीय दर्शन के छः प्रकारों में से सांख्य भी एक है जो अद्वैत वेदान्त से सर्वथा विपरीत मान्यताएँ रखने वाला दर्शन है। इसकी स्थापना करने वाले मूल व्यक्ति कपिल कहे जाते हैं। 'सांख्य' का शाब्दिक अर्थ है - 'संख्या सम्बंधी' या विश्लेषण। इसकी सबसे प्रमुख धारणा सृष्टि के प्रकृति-पुरुष से बनी होने की है, यहाँ प्रकृति (यानि पञ्चमहाभूतों से बनी) जड़ है और पुरुष (यानि जीवात्मा) चेतन।योग शास्त्रों के ऊर्जा स्रोत (ईडा-पिङ्गला), शाक्तों के शिव-शक्ति के सिद्धांत इसके समानान्तर दीखते हैं। 

हिन्दू धर्म के मूल से परिचय के लिए सांख्यदर्शन के २५ तत्वआत्मा को समझना होगा, जो किसी भी मानव के लिए कुछ यूँ हैं: यह भागवत पुराण के श्लोक का ही अभिप्राय है:  

पंच महाभूत: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश 
पांच: तन्मात्र: गंध, रस, रूप, स्पर्श और शब्द 
चार अंतःकरण: मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त 
पांच ज्ञानेंद्र: जीभ, नासिका, नेत्र, त्वचा और कान 
पांच कर्मेन्द्रियाँ : पाद, हस्त, उपस्थ, पायु, वाक

विज्ञान के तर्क और आज का मेडिकल साइंस सांख्य के इन सिद्धान्तों की ही बात को दोहराता दीखता है। मूल रूप से हिन्दू धर्म का विश्वास तर्क संगत वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आध्यात्म से जुड़ा हुआ है इसमें किसी पर आक्रमण कर जैसा कुछ नहीं है। इतिहास से अधिक ऐतिहासिक (दस हज़ार वर्ष से अधिक) हिंदू धर्म के वेद इस बात को स्पष्ट रूप सेकहते है कि: "एकम सत, विप्रबहुधवदंति"- सत्य एक है लेकिन विद्वानों द्वारा इसकी व्याख्या विभिन्न प्रकार से की गई है। कई सिद्धान्तों के माध्यम से इस बात को समझाया गया है। मित्रों धर्म और आध्यात्म दो अलग अलग चीजें हैं, उसमे भी व्यक्ति के लिए आध्यात्म अधिक महत्त्व रखता है, उसके लिए धर्म दुसरे स्थान पर आता है। विज्ञान के तर्क, आध्यात्मिक व्यक्ति के लिए कोई विरोधाभास नहीं करते। मित्रों आज जब विश्व समुदाय में कई वर्ग अपने अपने पंथ प्रचारक हर ओर भेजते हैं, वेटिकन सिटी ईसाइयत के प्रचार के लिए दुनिया भर में मिशनरी भेजते रहे हैं और आज भी उनका यह कार्यक्रम जारी है, आपने हिन्दू बहुसंख्यक नेपाल में भूकंप आने पर इन मिशनरीज़ को बाइबल देते हुए देखा है। यह कुतर्क करते पाये जाते हैं कि यीशु की पनाह में उन्हें मुक्ति मिलेगी और उन्हें हिन्दू धर्म को छोड़कर ईसाई हो जाना चाहिए। ठीक ऐसा ही मुस्लिम सूफी संत भी करते आये हैं जो पिछले बारह सौ वर्षों से भारत में हिन्दू धर्म को समाप्त करने और इस्लामीकरण के लिए प्रयासरत हैं। हिन्दू फिर भी सिर्फ अपने मूल आध्यात्मिक धारणा और योग सिद्धांत के कारण जीवित रहा, वह कभी काबुल में मस्ज़िद तोड़ने नहीं गया।

मैं यहाँ इतिहास की विवेचना करने या किसी की श्रेष्ठता सिद्ध करने नहीं, बल्कि विश्व में हो रहे धार्मिक कट्टरवादी उन्माद पर चिंतित हूँ। अपने मूल तत्व से भटकाते हुए कथित धर्म गुरु कभी कभी धर्म की मूल भावना से ही भटक जाते हैं। यहाँ धार्मिक गुरुओं की ज़िम्मेदारी है कि वह धर्म की मूल आध्यात्मिक धारणा पर बने रहे और वसुधैव कुटुम्बकम् की अभिधारणा को प्रचारित कर अतुल्य भारत को विश्वगुरु बनाने में योगदान दें। 

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(आज कल मैं भागवत और सांख्य का विद्यार्थी बनकर कुछ सीखने का प्रयास कर रहा हूँ, कुछ ब्लॉग पोस्ट्स के माध्यम से और भी बातें साफ़ करने का प्रयास करूँगा)

1 टिप्पणी:

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " वोटबैंक पॉलिटिक्स - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !