शुक्रवार, 29 मई 2015

वर्चस्व की लड़ाई...

मित्रों आजकल मुझे हर ओर किसी न किसी रूप में बर्चस्व की लड़ाई करते हुए और झंडा बरदार होते हुए कई लोग दीख रहे हैं। यह कई रूप से सकारात्मकता को ख़त्म करता है और किसी भी मनुष्य की कार्यशैली को बुरी तरह से प्रभावित करता है। कॉर्पोरेट लाइफ में मैंने ऐसे कई अनुभव किये हैं जहाँ दो लोग आपस में लड़ाई कर गए कि मैं 2 साल 4 महीने का एक्सपीरियंस हूँ और यह 1 साल 8 महीने का सो मैं इससे सीनियर हूँ, "हाउ डेयर ही कैन टॉक टू मी लाइक दैट"। जी हाँ ऐसा मैंने इसी दुनिया में देखा है। ऐसा भारतीय राजनीति में भी बढ़चढ़कर होता है, केजरीवाल की दिल्ली में हो रही नौटंकी इसी वर्चस्व की लड़ाई का हिस्सा है। दूसरी पार्टी के राज्यपालों का मुख्यमंत्रियों से होता संघर्ष भी वर्चस्व की लड़ाई का ही एक परिणाम है। बहरहाल राजनीति को राजनीति तक रहने दिया जाए और हम बात करते हैं अपने बारे में।

मित्रों मेरा मानना है, कोई भी झगड़ा या मनमुटाव दो लोगों के आपसी वैचारिक मतभेद के कारण नहीं बल्कि बात कहने के अंदाज़ से ज्यादा होती है जिसे मैं "बैड टोन ऑफ़ वॉइस" कहता हूँ। सोच कर देखिए अगर किसी भी बात को सही शब्दों के इस्तेमाल से कही जाए तो वह बहुत असरकारक होगी। शायद सामने वाला आपकी बात को समझ जाए। अगर नहीं भी समझ पाया तो भी आपका रिश्ता खराब न होगा और कोई नकारात्मक ऊर्जा नहीं आएगी।

आजकल यदि लोग हर बात अपनी नाक पर न ले आएं तो फिर कोई दिक्कत न हो। इसमें अपनी नीयत साफ़ होनी चाहिए और सामने वाली की नीयत पर भरोसा होना ज़रूरी है। अगर आप किसी भी रिश्ते में अपने हिस्से की ईमानदारी रख पाते हैं तो फिर आप सुखी रहेंगे। ज़िन्दगी वाकई सिर्फ अपने हिस्से की ईमानदारी रखने का ही नाम है, अगर कोई आपसे गलत व्यवहार करता है तो यह उसकी दिक्कत है आपकी नहीं। वैसे आज कल का दौर प्रपंचतंत्र का है पंचतंत्र का नहीं सो शायद ऐसा संभव न हो। लेकिन कोई बात नहीं, प्रयास करते रहिए और कुछ हो न हो नींद बहुत अच्छी आएगी।

3 टिप्‍पणियां:

PD ने कहा…

बिलकुल भैया.. सौ फीसदी सहमत हूँ आपसे..

Shekhar Suman ने कहा…

सहमत...

ब्लॉग बुलेटिन ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, क्लर्क बनाती शिक्षा व्यवस्था - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !