बंद.... एक और बंद..... आखिर इस बंद का क्या मतलब.... सोमवार का मुंबई बंद कितना राजनीतिक है और कितना सामाजिक... यह बात समझना आम जनता के लिए ज़रूरी है... बीते दौर में सत्ता संघर्ष में बेमानी हो चुके मुद्दों के बीच शिवसेना अपना वजूद तलाशती हुई किसी मुद्दे को तलाश रही थी... और ऐसे में मुम्बई में बंद हो चुके मिल मजदूरों की बदहाली में शिवसेना हो एक बड़ा मुद्दा नज़र आना स्वाभाविक है... और इस प्रकार के राजनीतिक संघर्ष में मूल मुद्दे के गम हो जाने की एक बड़ी सम्भावना है... आइये पहले इस मुद्दे को समझते हैं की आखिर मुद्दा है क्या.... दर असल सन अस्सी के दौर में मुम्बई में मिलों की हडताल की डा दत्ता सामंत की पहल का विरोध करनें वाली शिवसेना नें उस समय मिल मज़दूरों के साथ थी और उस दौर में शिवसेना को मज़बूती देनें वालों में इन्ही मिल मज़दूरों का एक महत्त्वपूर्ण योगदान था, सन १९८१ के हडताल और उसके बाद एक के बाद एक बन्द हुए मिलों के बेरोजगार मजदूर आज तक अपनें अधिकारों से वंचित हैं और मुंबई में बंद हो चुकी मिलों के बेरोजगार मजदूरों के लिए घर का इंतजाम अब तक सरकार नहीं कर पाई है। जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने सन् 2006 में सरकार को निर्देश दिए थे कि वह मिल मजदूरों के लिए सस्ते घरों का इंतजाम करे.... अब सामने एक बड़ा मुद्दा है.... मुद्दा मराठी मानुष क अस्मिता से भी जुड़ा हुआ है और ६ महीने के बाद के निकाय चुनावों के लिहाज़ से संगठन को मजबूत करने के लिए एक ज़रूरी प्रयास भी है.... विरोध और मिल मजदूरों की बात कहना और मुम्बई बंद करना दो अलग अलग मुद्दे हैं.... दर-असल भारत जैसे देश में बंद कर देना किसी भी राजनीतिक दल के लिए एक हथियार के समान हो गया है... आम जनता को होने वाली तकलीफ और बंद के कारण होने वाले आर्थिक नुकसान की भरपाई कैसे होगी.... कांग्रेस जैसी पार्टी जो कभी किसी मुद्दे को सुलझाने में विश्वास नहीं रखती जब वह महाराष्ट्र और केंद्र की सत्ता पर हो तो ऐसे में इस मुद्दे के सुलझने की उम्मीद भी नहीं है.... दोनों ही दल एक दुसरे को कोसेंगे.... और असली मुद्दा वहीँ का वहीँ रहेगा... ऐसे में मुम्बईकर अपनी हिफाज़त खुद ही कर लें तो ही अच्छा है.... ....
3 टिप्पणियां:
सत्य वचन ...
अब बंद को बंद करने के लिये बंद करवाना पड़ेगा।
बंद करवाना जरुरी है
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