बुधवार, 20 जनवरी 2016

ब्रम्ह सत्यम जगत मिथ्या


एक बार नारद आकाश मार्ग से कहीं चले जा रहे थे, उन्हें रुदन करता और बहुत ही घबराया, डरा हुआ एक पक्षी दिखाई दिया। उस जीव की इस दशा पर उन्हें बड़ी दया आई सो वह उसके पास गए और उसकी इस अवस्था का कारण पुछा। उस कबूतर ने बताया कि नित्य की भाँति आज वह अपने परिवार के लिए अन्न संग्रह कर रहा था तो ठीक उसी समय काल ने उसे देखा और उसे देख कर काल ज़ोर से हंसा। उसी काल के हंसने से वह आक्रान्त था कि निश्चित ही उसका अंत अब सुनिश्चित है। उसने नारद के चरणों में गिरकर अपने लिए अभय माँगा। नारद ने दया करते हुए उसे अपनी मन्त्र शक्ति से हज़ारो कोस दूर हिमालय की कंदराओं में पहुंचा दिया। नारद अपने इस प्रयास से स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे थे और उसी अभिमान में वह काल से जा मिले। वह काल उसी कबूतर को अपने साथ लिए जा रहा था और कबूतर अब जीवित न था। जिस कबूतर के अभय के लिए नारद ने ऐसा प्रयास किया उसे असफल देख नारद को घनघोर निराशा हुई। नारद ने काल से पुछा कि यह कैसे हुआ तो काल बोला, हे मुनिराज, आज जब मैंने इस पक्षी को अन्न संग्रह करते हुए देखा तब मैं इसलिए हंसा क्योंकि विधाता ने इसकी मृत्यु का समय और स्थान अबसे कुछ पल बाद हज़ारो कोस दूर हिमालय की कंदराओं में लिख रखा है और यह अभी यहीं है। मैं यह सोच कर विधाता पर हंसा कि इतनी जल्दी यह अबोध पक्षी वहाँ पहुँचेगा कैसे? लेकिन आपने मेरा काम आसान कर दिया और इसे अपनी मन्त्र शक्ति से इसके प्रारब्ध तक पहुंचा दिया। विधाता ने प्रत्येक प्राणी के जीवन, मरण का समय निश्चित किया है और हर प्राणी अपने अपने कर्मानुसार उसी गति को प्राप्त होते हैं।

इसके बाद नारद अचेत हो गए, उन्हें हत्या के पाप जैसा बोध होने लगा और वह इसी पाप के प्रायश्चित के लिए नारायण के पास पहुँचे। करुणासिंधु भगवान ने नारद को संसार के चक्र का गूढ़ रहस्य बताया, "न कोई आता है, न कोई जाता है, यह संसार, उसकी हर एक गतिविधि, प्राणी, जीव, चर, अचर, सजीव, निर्जीव, सभी योनियों के सभी चक्रों और यहाँ तक कि काल को संचालित करने वाली शक्ति परमात्म ही है"। रामायण भी कहता है कि "होइहै सोई जो राम रची राखा, कोई करि तरक बढ़ावहि साखा"। मित्रों सो इस प्रेरक कथा से प्रेरणा लीजिये और अपने जीवन में नकारात्मकता को निकाल कर आगे की सुधि लेना ही ठीक है।

आज का ज्ञान यहीं तक, कल देव बाबा कोई और ज्ञान देंगे। 😊😊

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

होइये वही जो राम रचि राखा।