मुंबई में मेरे संघर्ष के दिनों में कई मित्र बनें, उन्ही में से एक थे गौरव सूद। गौरव और अंजुम और हमारी प्यारी बिटिया शरण्या। न जाने कितने ही ट्रिप पर हमारा साथ रहा और न जाने कितने हज़ारों किलोमीटर हमारी बक बक झेली है गौरव और अंजुम ने। आल्टो से लेकर रिट्ज और फिर डस्टर तक हमने कई मील साथ रास्ता तय किया है। वैसे गौरव के साथ मेरी पहचान एक अजीब से वाकये के दौरान हुई थी। दर-असल उन दिनों हम दोनों ही नौकरी की तलाश में मारे मारे घूम रहे थे और इन्ही वाक-इन के चक्कर लगाते हुए बेरोज़गारों की कतार में दो नौजवान आपस में टकरा गए। पहला राउंड हो चुका था और हम दोनों ही थके हुए थे, मुझे कहीं बैठने की जगह नहीं मिल रही थी और गौरव भाई अपनी मित्र मण्डली के साथ बैठे थे। मुझे यूँ ही अस्त-व्यस्त सा देखकर गौरव भाई ने कहा, "मेरे भाई आ जाओ" और मैं बस इसी आत्मीय आवाज़ से गौरव भाई के पास आ गया। बहरहाल वाक-इन से दोनों धक्के खा कर अपने अपने रास्ते मुंबई आ गए और दोनों का ही कहीं नहीं हुआ। मोबाइल को हम दोनों के पास ही नहीं थे सो ईमेल की अदला बदली हो गयी। दिन बीते, कई महीने बीते और फिर नौकरियां मिली, अपने अपने रास्ते दोनों की ज़िन्दगी चलती रही और इसी बीच मेल की अदला बदली होती रही। फिर हम पडोसी बने, साथ साथ एक कंपनी के काम किये, एक दशक से अधिक की दोस्ती आज भी यूँ ही है। आज बड़ी याद आ रही थी गौरव और अंजुम तुम दोनों की तो यूँ ही कुछ चित्रों को संजो पर यह पोस्ट लगा दी गई। आइये आप भी हमारे गौरव बाबा जी के दर्शन कीजिये।
वैसे आज हमारे गौरव भाई टोक्यो में हैं और मैं अमेरिका में, चौदह घंटे का समय अंतराल है लेकिन हैं बस एक पिंग दूर।
आज की पोस्ट इतनी ही, अगली पोस्ट में भी मुंबईनामा जारी रहेगा अभी कुछ दिन और :-)
2 टिप्पणियां:
आपका बंगलोर आना आज भी कल जैसा ही लगता है।
बिल्कुल सच कहा आपने, वाकई मानो कल ही की बात लगती है :-)
एक टिप्पणी भेजें