हम अक्सर पॉजिटिव एटिट्यूड या सकारात्मकता पर कई लोगों को भाषण देते हुए सुनते हैं। खुद मोदी भी कई बार आधे भरे या आधे खाली पर काफी बार बोल चुके हैं। मेरी समझ में इस आधे खाली या आधे भरे हुए का भी अपना एक समाजशास्त्र है। यह खाली वह तबका है जो आज़ादी के लगभग अड़सठ साल बाद भी भूखा है, मूलभूत सुविधाओं से लाचार है। यह भारत का वह वर्ग है जो झुग्गियों में, नालों के किनारे, सड़क और फुटपाथ पर भूखा और नंगा है। इसके लिए शिक्षा, राजनीति, सुधार, बदलाव और बड़ी बड़ी बातें कोई मायने नहीं रखती हैं और इसके लिए सिर्फ सो वक्त की रोटी कैसे हो वह ही सबसे गंभीर चुनौती बन जाता है। अपने हिस्से के इस आधे खाली गिलास को देखकर वह हैरान है। उसे दिख रहा है कि दूसरी तरफ का गिलास लबालब भरा है लेकिन वह तो उसके हिस्से का है ही नहीं। वहीँ दूसरी तरफ के आधे भरे गिलास की तरफ नज़र डालिये तो वह चकाचौंध से भरी हुई पांच सितारा संस्कृति से भरपूर इण्डिया है। यह वीकेंड आने पर खुश होता है, पार्टी करता है, मॉल में सिनेमा देखता है, मोबाइल तकनीक का भरपूर उपयोग करता है, उपग्रह, चाँद और मंगल की बातें करता है। यह वैश्विक रूप में भारत का ब्रांड इण्डिया बनाने के लिए एक प्रचार सामग्री की तरह दिखाया जाता है। यहाँ मैं किसी वामपंथी की तरह फालतू की संवेदना नहीं परोसना चाहता लेकिन मैं एक ध्यान दिलाना चाहता हूँ, इस खाली और भरे हुए गिलास के बीच के सन्नाटे की ओर। आज़ादी के अड़सठ साल बाद भी लगभग बाइस करोड़ लोग इसी खाली गिलास की तरफ हैं। यह कहीं किसी राजनैतिक दल के वोट बैंक हैं, जो जानबूझकर इन्हें गरीब और निर्धन बनाये रखना चाहते हैं क्योंकि यदि वह सबल हो गए तो इनकी राजनीति कैसे चमकेगी।
मित्रों, एक बात ध्यान से देखिये: विश्व का सबसे बड़ा स्लम "धारावी" मुम्बई के उपनगरीय तंत्र का एक अहम हिस्सा है। इसमें विश्व का सबसे बड़ा चमड़े का कारखाना है, यहाँ जूते, जैकेट, बेल्ट और भी न जाने क्या क्या बनाया जाता है। कांग्रेस के औद्योगीकरण में बड़े व्यापारियों को लाभ पहुंचाने के नाम पर इन छोटे और मंझोले उद्यमियों को बहुत नुकसान हुआ। पर्यावरणविद भी इको-सिस्टम का नाम लेकर इन्हें कोसते रहे लेकिन कभी किसी ने इन्हें कहीं और बसाने और इस उद्योग में एसएमई बनाने की वकालत नहीं की। मोदी का स्टार्ट-अप इण्डिया का मैं पुरज़ोर समर्थन करता हूँ क्योंकि इसके बाद विश्व में भारत की एक अच्छी क्षवि बनेगी और कई कंपनियां आएँगी। हर क्षेत्र में बहुत स्कोप है, चाहे वह कचरे के रीसायकल का हो या फिर जैविक खाद बनाने का, सोलर प्लांट का हो या फिर कुछ और। आपको हैरानी होगी यह सुनकर लेकिन गोबर के कंडे बनाकर उनका निर्यात संभव है। इस भरे हुए गिलास और आधे खाली गिलास के बीच के सन्नाटे को दूर करने के लिए ज़रूरी है कि इस वर्ग को मजबूत किया जाए। उसे आरक्षण का लपूझन्ना नहीं अवसर चाहिए। थोड़ी सी पूँजी और दिशा चाहिए। सरकारी तंत्र भी उसके लिए अनुकूल हों, पुलिस प्रशासन माफिया से उनकी रक्षा करें ताकि वह अपने पैरों पर खड़े हो सकें। इस साठ साल के कांग्रेसी राज की वोट बैंक राजनीति ने किसी भी समस्या के समाधान के बारे में न सोचकर सिर्फ वोट बैंक की राजनीति की मानसिकता ने बहुत मुसीबत कर दी है, तंत्र ही भ्रष्ट है और अब यही भ्रष्ट आचरण हमारी दिनचर्या का हिस्सा है। यकीन न आये तो खुद के गिरेबां में झाँक लीजियेगा, समझ जाइयेगा।
बहरहाल चिंता ज़रूर कीजिये लेकिन भली प्रकार से बुद्धि के तर्क को ध्यान में रखकर, लीजिये चाय पीजिये तब तक। वैसे इस समाजशास्त्र से इतर यहाँ आधी रात हो रही है और हम तारों सितारों की ओर टकटकी लगाये हुए हैं, कैमरे से किसी चमकते हुए तारे की फोटो, चन्द्रमा की फोटो खींच खींच कर खुद को ही खुश कर रहे हैं। धीमी धीमी आवाज़ में कंप्यूटर गीत बजा रहा है की वह सुबह कभी तो आएगी।
चलिए आप एक प्याली कप और चंदा मामा की फोटो देखिये और हमें इजाजत दीजिये, कल सुबह फिर से नौ से छ की गुलामी करने जाना है।
2 टिप्पणियां:
चाय और चन्दामामा, बहलाने के उपमान अच्छे हैं, प्रश्न फिर भी सच्चे हैं।
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " "जिन्दगी जिन्दा-दिली को जान ऐ रोशन" - ब्लॉग बुलेटिन " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
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