ऐसे ही इन्टरनेट पर पन्ने टटोल रहा था... वसीम बरेलवी साहब की यह लाईनें दिखी... सोचा आप लोगों के साथ भी बांटी जाए.... वैसे डुबते हुए की नियति में डूबना ही लिखा है... वह कहते हैं ना....
साहिल पर भीड भरी है तमाशबीनों की.... मगर डूबते की इमदाद कोई नही करता.... सही है बन्धुओं... वसीम भाई की कुछ लाईनें...
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा
यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
1 टिप्पणी:
अब आगे के शेर ये रहे ---:)
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा
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