मेरी दुनिया मेरा जहाँ....
शुक्रवार, 8 दिसंबर 2017
फोन बिन सब सून...
गुरुवार, 8 सितंबर 2016
अनजान रास्तों पर पूरे कॉन्फिडेंस के साथ:-2
जीपीएस उपग्रह |
रूस के गो-नेट और ग्लोनास |
चीन का बीडीएस |
गगन |
यह देखिये आज की ड्राइव के बाद का चित्र |
शुक्रवार, 2 सितंबर 2016
कैमडन एडवेंचर एक्वेरियम
हमारा रास्ता और अपने सिंहासन पर विराजमान आदि महाराज |
दरियाई घोड़े (सी-हॉर्स) |
(जेली-फिश) |
गौरैये |
न्यूजर्सी और पेंसिल्वेनिया के बीच बेंजामिन फ्रैंकलिन सस्पेंसन ब्रिज |
सोमवार, 15 अगस्त 2016
न्यूयॉर्कर बिहारी का पंद्रह अगस्त..
बुधवार, 3 अगस्त 2016
अनजान रास्तों पर पूरे कॉन्फिडेंस के साथ.. मोबाइल नेविगेशन ज़िंदाबाद
न्यूयॉर्क जाने के लिए लिंकन टनल में ट्रैफिक जाम को बताते वेज़ के सोशल नेटवर्किंग |
1612 किमी चलने के बाद भी पूरे मजे से..... |
शुक्रवार, 25 मार्च 2016
हिन्दू धर्म, आध्यात्म और हम
सोमवार, 21 मार्च 2016
बैठे ठाले...
चन्दन है इस देश की माटी तपोभूमि हर गाँव है... हर बाला देवी की प्रतिमा बच्चा बच्चा राम है। न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी के बीच की ट्रांस हडसन पाथ ट्रेन में नेटवर्क नहीं आता, क्योंकि ट्रेन भूमिगत रेल प्रणाली है और हडसन के तल के नीचे एक सुरंग से चलती है। मैं कान में हेडफोन लगाए संघ के गीत सुन रहा हूँ, जो शक्ति इन गीतों में है वह किसी और धिनचाक वाले कानफाडू गीतों में कहाँ?
ट्रेन में इस समय मेरे अलावा कोई भारतीय नहीं दिख रहा, सभी मुख्यतः अमेरिकी या अफ़्रीकी लग रहे हैं लेकिन सभी का मोबाइल में व्यस्त रहना और कॉमन है (मैं भी टीप टीप कर रहा हूँ सो मैं भी अपवाद नहीं)। कुछ बुज़ुर्ग लोग अखबार में व्यस्त हैं, शायद यहाँ की भी बुज़ुर्ग पीढ़ी अभी तक मोबाइल से न्यूज़ पढ़ने के लिए अभ्यस्त नहीं हुई है सो अखबार पढ़ रही है। एक दो महिलायें उपन्यास पढ़ रही हैं, उनमे से एक न जाने क्या पढ़ रही है क्योंकि कभी हंस रही है कभी गंभीर तो कभी ओह ओह कर रही है। पहली बार उसके यूँ आवाज़ निकालने से लोगों को अजीब लगा लेकिन अब सबको कोई फर्क नहीं पड़ रहा। हमारी विशेषता यही है न कि हम हर किसी को अपना लेते हैं। बहरहाल कल की बर्फ के बाद की ठंड ने थोड़ा परेशान तो किया ही है। मोटे मोटे जैकेट और मफलर कसे हुए लोगों को देखकर अजीब सा लगता है, पिछले हफ्ते जब पारा पचीस डिग्री पार गया था तब क्या गजब रंग बिरंगे लोग थे अब फिर से सब काला और ग्रे है। वैसे मौसम है, बदल ही जाएगा।
इस ट्रेन में मेरे सामने बैठे एक महिला ने कॉफ़ी का ग्लास फ्लोर पर रखा है लेकिन ट्रेन के चलने या रुकने से एक भी बूंद न छलका और न ही गिरा। वह कोई उपन्यास पढ़ रही है और बीच बीच में चुस्की लेकर रख दे रही है। इतना स्टेबिलिटी काश मुम्बई लोकल में होती तो मजा ही आ जाता, मुश्किल है लेकिन शायद अपने मेट्रो में भी ऐसा ही होता होगा।
मिडटाउन मैनहटन में 23 स्ट्रीट का मेरा स्टेशन आने को है और कान में बज रहा है, "होइहै सोई जो राम रची राखा, को करी तर्क बढ़ावहि साखा"... बस इसी सन्देश के साथ आज का दिन शुरू किया जाए... नया सप्ताह, सोमवार!!
रविवार, 21 फ़रवरी 2016
हाउ कम इण्डिया!!
मेरे ऑफिस में मेरी डेस्क के अगल बगल एक चीनी और एक अमेरिकी है, चीन का प्राणी जब मौका मिलता है तक अमेरिका को कोस लेता है और अमेरिका वाला तटस्थ रहकर शांत रहता है। मैं भी तटस्थ ही रहता हूँ क्योंकि ऑफिस में क्या ही बोलना। एक बात पर इन दोनों की सहमति है और वह है फुटबॉल, दोनों का जूनून एक सा ही है। दोनों इंग्लिश प्रिमीयर लीग और अमेरिकी नेशनल फुटबॉल लीग बहुत मजे से देखते हैं और ऑफिस के टीवी पर सीएनबीसी की जगह फुटबॉल लगा लेते हैं।
इनके इस शौक में मैं भी मजे ले लेता हूँ क्योंकि थोड़ा बहुत ही सही फुटबॉल का शौक तो मुझे भी है ही। मेरे पापा फुटबॉल के अपने ज़माने के मशहूर खिलाड़ी थे और मौका न मिलने और कोई भी गाइडेंस न होने के कारण और सत्तर के दशक के उथल पुथल में बिहार में ज्यादा कुछ कर नहीं पाये। मैं आज भी फुटबॉल फॉलो करता हूँ लेकिन जूनून जैसा कुछ नहीं। बहरहाल यह दोनों प्राणी खूब मौज से फुटबॉल का मजा लेते रहे, इनसे गलती तब हो गयी जब इन्होंने कहा कि "एनएफएल इस रिचेस्ट बोर्ड"। मैंने कहा भाइयों एक बार गूगल करके तो देखो, फिर बताओ कौन है। दोनों ने गूगल किया और जवाब आया बीसीसीआई, अब इनकी हैरानी। मुझे पूछे यह बीसीसीआई क्या है, हम बोले भारतीय क्रिकेट बोर्ड। इन्होंने बोला लेकिन क्रिकेट देखने और खेलने वाले देश ही कितने हैं, न अमेरिका क्रिकेट खेलता है न चीन। हम बोले गूगल कर लो न, बेचारे थोड़ा सा घबरा गए जब कहीं यह देख लिए की, भारतीय क्रिकेट टीम सबसे महँगी फ्रेंचाइजी है, आईपीएल दूसरा सबसे बड़ा क्लब स्पोर्ट है और बीसीसीआई सबसे अमीर खेल बोर्ड है। उन दोनों का ही रिस्पांस था, "हाउ कम इण्डिया"... हा हा, मुझे बड़ा मजा आया फ़िलहाल..
बहरहाल इसमें गलती इनकी नहीं थी, उन्होंने भारत के बारे में सोचा ही नहीं होगा कभी, सोचते भी कैसे.... वैसे भारत के बीसीसीआई को इतना अमीर बनाने में हम सभी का योगदान है, इसके इतने पॉपुलर होने से बाकी खेल लगभग बर्बादी की कगार पर हैं, आज खुद ही देखिये....
सोमवार, 8 फ़रवरी 2016
अलविदा अन्ना भैया...
अपना कौन पराया कौन, अपनों ने वनवास दिया श्री राम को सरजू पार और पराया था जो केवट, बन गया जीवन की पतवार। कोई मन में रहकर मन के सौ सौ टुकड़े कर जाए, कोई मन से दूर हो फिर भी यह मन सुख से भर जाए। राजश्री की फ़िल्म इसी लाइफ में का यह गीत, अभी एक ऑनलाइन रेडियो पर सुना। वाकई यह बात सच ही है, कभी कभी अपने खुद के रिश्ते बहुत तकलीफ देते हैं और कोई ऐसा व्यक्ति जो हमारा कोई नहीं लेकिन वह मार्गदर्शक बन जाता है। हिन्दी ब्लॉगिंग से मेरा कुछ ऐसा ही रिश्ता है, यहाँ मुझे पूरा परिवार मिल गया। भैया, भाभी, दीदी, कितने प्यारे छोटे भाई बहन और न जाने कितने ऐसे अनजान लोग जो भले कभी हमसे मिलें न हों लेकिन फिर भी हमारे अपने ही हैं। हिन्दी ब्लॉगिंग के शुरूआती दिनों वर्ष 2003/2004 और 2005 के समय में जब यूनिकोड टाइपिंग नहीं थी और हम सीखने सिखाने में ही अपना समय बिता रहे थे, तब के साथी आज तक अटूट हैं।
जब मैं अमेरिका आया और मनीषा कन्फ्यूज़ थी कि कैसे सब होगा, मैंने पुरी कॉन्फिडेंस से कहा, अभिषेक है स्तुति है कोई दिक्कत नहीं होगी। और वाकई मेरे इन दोनों भाई, बहन ने बहुत मदद की है। शिवम भैया, प्रशांत, शेखर, सलिल दादा, अर्चना दीदी, रश्मि दीदी, अपने राजा भैया, अजय भैया, उड़न दद्दा, ललित दादा, महफूज़ भाई, प्रवीण भैया से लेकर संतोषजी तक सभी ने मेरा मार्ग दर्शन ही किया है। ऐसे कई और नाम हैं जो अभी स्मृति पटल पर नहीं आ रहे लेकिन हिंदी ब्लॉगिंग के साथियों ने हमेशा मेरा साथ दिया है।
आज अन्नाभाई अविनाशजी के चले जाने से यह परिवार को बहुत गंभीर क्षति हुई है। हिन्दी ब्लॉगिंग का एक बहुत पुराना साथी, शिक्षक, मार्गदर्शक, व्यंग्यकार अंतिम यात्रा पर। यह बात बहुत विचलित कर गयी। आज सुबह सोकर उठते ही शिवम भैया का सन्देश देखा और मन उदास हो गया। मेरी अन्ना भैया से कई बार फोन पर बात हुई, मुलाक़ात हालाँकि एक दो बार ही हुई लेकिन परिचय बना रहा। व्यंग्यकार के साथ ज़िन्दगी ने बहुत बड़ा व्यंग्य किया, लेकिन उनका यूँ ही चले जाना धक्के जैसा है। ईश्वर के पास भी हमारे अन्ना भैया वही चिरपरिचित अंदाज़ में डोरी वाला चश्मा लगाए कोई व्यंग्य ही कह रहे होंगे.....
अलविदा अन्ना भैया...