रविवार, 2 मई 2010

मेरी मां और मेरे पिता..

आज का दिन साहब वैसे तो हमारे लिए बहुत ख़ास दिन है.... हमारी अम्मा और पापा की शादी की शादी की साल गिरह है | हमारे पिता जी एक बात हमेशा कहते हैं की देश में इमरजेंसी लगी हुई थी और उसी इमरजेंसी में ही शादी करनी पड़ी, और फिर देश की इमरजेंसी तो ख़त्म हो गयी मगर यहाँ.....| अब साहब हम तो यह बात बचपन से सुनते आये हैं और हर साल विश करते समय पहली लाइन यही कहते हैं और फिर सभी लोग खुल के ठहाका लगाते हैं....|
खैर यह तो रही मजाक और विनोद वाली बात मगर आज कुछ बात और भी करने का मन हो रहा है....

आज जब हम लोग तथाकथित विकसित समाज में रह रहे हैं और इस आभासी तरक्की और क्षद्म चमकदार दुनिया में बिना मतलब की परेशानियो में पड़कर खुद को ना जाने कैसे कैसे चक्कर में फसा ले रहे हैं... अब ज़रा याद करें की हमारे माता पिता ने कैसे कैसे कष्ट झेले हैं हमारे पालन पोषण के लिए... उस ज़माने में तो यार ना कोई सुविधा थी और अम्मा को सारे काम खुद से ही करने पड़ते.... मुझे एक वाक्या याद आता है एक बार पापा के ऑफिस से बहुत सारे मित्र औचक ही घर पर आ गए थे और उस दिन पापा जी तो उनके साथ ही बाहर बैठे थे और हम सारे बच्चे अन्दर अम्मा के पास थे.... पंगा ये हो गया की उस दिन घर में गैस ख़त्म हो गयी... मिटटी का तेल भी नहीं था.. अभी साहब मेहमानों की खातिरदारी... और घर में चूल्हा नहीं... अभी क्या हो..... पंगा.... मगर नहीं.... मेरी अम्मा ने तुरंत देसी स्टाइल वाला चूल्हा चालू किया... हम बच्चो ने पेड़ से लकड़ियाँ तोड़ी और फिर देसी चूल्हा लगाया गया.... फिर चाय बनी और उसके बाद खाना भी बना... असली मजा तो तब आया जब पापा को पता चला की ऐसा ऐसा हुआ आज..... यार ऐसा समर्पण और प्रेम.... अनुकरणीय....

एक कविता लिख रहा हूँ.... समर्पित करता हूँ संसार के हर माता पिता को आज के दिन....

माता-पिता

बोध
संसार का
बोध
सत्य और असत्य का
बोध
ऊंच और नीच का
हे पिता
पाया बस आप ही से पाया
जीने का साहस
बुद्दि और विवेक
और धैर्य
हे पिता
पाया बस आप ही से पाया

और हे मां
तुझसे पायी ममता
निःस्वार्थ भाव भक्ति
प्रेम और करुणा
भावनाओं की अभिव्यक्ति
कभी भी
पीछे ना हटनें का साहस

हें पिता और माता
धन्य हुआ जीवन
धन्य हुआ यह तन मन
हे मां... हे पिता...



-देव

6 टिप्‍पणियां:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

अम्मा और बाबूजी को हमारी तरफ से भी प्रणाम और बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

Udan Tashtari ने कहा…

माँ पिता को समर्पित सुन्दर रचना.

प्रसंग पढ़कर लगा कि हर माँ के लिए शायद ऐसी ही कितनी कहानियाँ उनके बच्चों के पास प्रेरक प्रसंग होकर रहती हैं. अच्छा लगा पढ़कर.

आपके माता पिता को वैवाहिक वर्षगांठ की बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएँ.

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

अच्छी रचना है। आप के माताजी-पिताजी को उन के विवाह की चौंतीसवीं वर्षगांठ पर बधाई।

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

देव जी, सुप्रभात.
कविता ने तो आँखों के कोर गीले कर दिए.
माता-पिता का समर्पण बच्चों के लिए उनकी सबसे मधुर और भावुक यादों में आती है. सच है.
घरेलु वाकया जो आपने सुनाया उससे ये अहसास होता है कि जहाँ अतिथि को पूजने की चाह है वहाँ युक्ति स्वतः सूझती है. एक पुरानी कहावत चरितार्थ होती है "जहाँ चाह वहाँ राह". हमें करना अब यही है कि "माता-पिता के दिए संस्कारों को आगे बढ़ाना है".

संजय भास्‍कर ने कहा…

आप के माताजी-पिताजी को उन के विवाह की चौंतीसवीं वर्षगांठ पर बधाई।

बेनामी ने कहा…

GR8 THAKUR..
WAH KYA YEH UTKAT PREM, KITANA BHAAV AAPKE SHBDO MEIN.


PAPA MUMMY KO HAMARI TARAF SE BAHUT BAHUT BADHAI..UNKA JEEVAN SUKHI AVAM SHANTI PURN HO YAH SADICHHA-THAKUR