तेरी भी चुप मेरी भी चुप
अभी समाज की बुराइयों पर नज़र डालिए.... दहेज़, भर्ष्टाचार, कुशाशन, दुनिया भर में फैला आतंक-वाद, देश में पूरी तरह से फ़ैल चुका नक्सलवाद, राजनीति में चोरी चकारी..... यह सब भैया आज कल की पीढ़ी को विरासत में मिली हुई चीजे हैं....जिसके लिए उत्तर आने वाली पीढियां मांगेगी... | अब अगर आज कल के युवा से कोई यह कहता है की राजनीति में थोड़ी रूचि लो... थोडा देखो देश समाज को... तो यह मेरे हिसाब से बेमानी है... भैया क्या फर्क पड़ता है... राजा राम हो या रावण.... देश की जनता का हाल थोड़ी बदलने वाला है... सो यह भी आज कल की पीढ़ी को विरासत में देने के लिए आज कल की प्रौढ़ पीढ़ी ही ज़िम्मेदार है... |
अब आप बताइए... कहाँ गलत हुआ..............? आखिर दो पीढ़ियों के दरम्यान आये इस फासले को भरेगा कौन...
मुझे याद है एक बार मैं किसी क्लाइंट साहब से बात कर रहा था और वह शख्स सुनना ही नहीं चाहते थे, मैंने उनसे कहा की आपको समझा पाना मेरे लिए कठिन हो रहा है, आप अपने जूनियर को भेजिए, क्योंकि आप तो मैनेजर हैं आपको पता ही नहीं होगा की काम करना कैसे है, आप अपने बन्दे को भेजो मैं उसको यह समझाऊंगा की कैसे काम करना है, आप मैनेजर की तरह रहो आपका काम हो जायेगा..... शांति रखो.... मेरी इस बात पर वह पचपन साल के बुज़ुर्ग पिनक गए.... बोले देव साहब जभी xyz (उनके अन्दर कम करने वाला बंद) पैंट में सु सु करता था, तभी से मैं एक्साइज देख रहा हूँ.... मैंने भी उनको उत्तर दिया... प्रभु एक कोल्हू का बैल, कई साल तक कोल्हू के चारो ओर चक्कर काटेगा, मगर उसके बाद भी उसको यह पूछेंगे की कोल्हू का फंक्सन क्या है तो वह आपको उत्तर नहीं दे पायेगा.... सो आप इंसान की तरह व्यवहार करो और अपने बन्दे को भेजो.... आपकी समझ नहीं आएगा जो मैं आपको समझाना चाहता हूँ |
मैं नहीं कहूँगा मेरा व्यवहार एकदम सही था, मगर प्रत्युत्तर में शायद सच ही निकला... मुझे उस समय बहुत ताज्जुब होता है जब मैं सुनता हूँ की तुम अभी बच्चे हो और मुझे इस चीज का बीस साल का अनुभव है | और उस समय आपको मालूम हो की महाराज एकदम बेकार ही बात कर रहे हैं और बिना मतलब फिजूल में समय ख़राब कर रहे हैं...
दर-असल यह एक बानगी भर था.... जो कुछ भी मैंने ऊपर लिखा... वह शायद मन के अन्दर छुपी एक भावना थी... शायद ज़रूरत इस बात की है की कैसे अपनी धरोहर को बचाया जाये... और दोनों पीढ़ियों के बीच एक समन्वय बैठाया जाए | दोनों ही पीढियां अगर एक दुसरे की भावनाओ को समझने लगे और दोनों को अपनी अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास हो जाये तो फिर कभी कोई बेटा अपने परिवार से दूर ना जाये... और अगर जाए तो भी मन से अपने परिवार.... अपने माता-पिता के पास रहे... देखते हैं क्या होता है...
देव
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