मेरी एक कविता...
ज़िन्दगी की आपाधापी मे
कुछ टुटते और बिखरते रिश्ते...
कुछ टुटते सपनें...
क्या यही नियति है?
नहीं?
तो फ़िर छोटी छोटी बातों
पर कैसे मन पर जोड देना...
अन्तर्मन की व्यथा
क्या किसी से कहना...
हारना जीवन से नहीं है तो फ़िर
ज़िन्दगी के कैन्वस पर
खुशियों की कूचीं से रंग भरना...
अपने आप को पाना...
फिर से अपने आप को पाना...
1 टिप्पणी:
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
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