बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

सुन लो भाई ध्यान लगा के

अच्छे लोग दुनिया में बहुत कम होते हैं, और अच्छे लोगों की संगती मनुष्य के चारित्र निर्माण में बहुत अहम् स्थान रखती है | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, हमें हमेशा अपने परिवार अपने आत्मीय जनों की आवश्यकता रहती है. चाहे सुख हो या दुःख, अगर अपने लोग साथ हो तो हर दिन दिवाली और हर दिन होली है | मेरी मां मुझसे एक बार बोली की जहां मेरे दोनों बेटे वहीं मेरा घर, कितना विश्वास है इस बात में | माँ में तो इश्वर का वास है भाई | मगर फिर भी एक बार सोचिये, केवल पैसे कमाने की उधेड़बुन में अपने परिवार और अपने लोगों को पीछे छोड़ देने का क्या तुक है | अब एक कहानी और सुनिए शायद आप लोगों को रुचिकर लगे | एक बार एक रिटायर्ड मास्टर जी अपनी टूटी सायकिल को बनवाने के लिए दूकान पर व्यस्त थे, तभी उनका एक शुभचिंतक उनको देख कर मिलने चला आया और उनके बीच का वार्तालाप सुनिए.
शुभचिंतक :- मास्टर जी कहं सायकिल के पीछे लगे हो, आपके बेटे तो सुना काफी तरक्की कर चुके हैं.
मास्टर जी :- हां मेरा बड़ा बेटा, पढ़ लिख के अमेरिका में आज बड़ा इंजिनियर है , बीच वाला जो हमेशा किसी न किसी खुर-पेंची में लगा रहता था वह वकील हो गया और आज कल हाई कोर्ट में प्रक्टिस कर रहा है.
शुभचिंतक :- और वोह छोटा वाला... जो हमेशा आपकी क्लास में मुर्गा बना रहता था.. अरे हां रमेश, वह तो किसी काम का नहीं था,
मास्टर जी :- हां वह चौराहे पे जो पान की दूकान है न, वोह उसी की है और उसी की वजह से मेरा घर चलता है, जो दुनिया के लिए किसी काम का नहीं था वही मेरे सबसे काम आ रहा है.

इसके बाद शुभ-चिन्तक ने कुछ भी नहीं कहा और मास्टर जी भी अपने घर की और बढ़ गए.

यह केवल एक कहानी नहीं है , यकीन मानिए यही आज कल की हकीकत है | अब भाई मेरे अमेरिका में अगर मर्सीडीज़ खरीदी तो क्या मतलब, उसमे बैठने के लिए ना अम्मा है और ना पापा, तो फिर.. अबे हिंदुस्तान में रहके अगर खुद की टैक्सी भी खरीदी तो उस खुशी में परिवार और मेरे अपने लोग साथ तो हैं. आज कल लोगो में एक बहुत बड़ा रोग आ गया है, की लोग खुद तो प्रक्टिकल और अधिक व्यवहारिक समझने लगे हैं, संबंधो को एक बोझ समझा जाने लगा है. मुझे याद आता है वह दिन जब मेरे घर में बिना बुलावे के पूरा मित्र मंडल आ जाता था और मेरी अम्मा को सबके लिए खाना और चाय नाश्ते की व्यवस्था अकेले ही करनी पड़ती थी, कोई मदद को नहीं आता था | आज कल के ज़माने में कितना मुश्किल है भाई |

अब आप लोग सोच सकते हैं की देव बाबा एकदम से रिश्ते और पन वाडी के उदाहरण पे कैसे उतर आए. दर-असल इधर दो तीन हफ्तों से मैंने जो कुछ भी महसूस किया बस उसी को यहां पटक रहा हूं |
और मैं तंग आ गया हु आज कल की व्यवहारिक जनता से, अपने मतलब निकलने में लगे लोगों से | यार दुनिया का एक सबसे छोटा और मासूम सा शब्द है प्रेम और विश्वास | आज कल का बाज़ार वाद उसी पर चोट कर रहा है | मास्टर जी के बच्चे एक नायब उदहारण है इसकी |

दर-असल अपना पन और विश्वास आज कल के ज़माने में कुछ अ-प्रासंगिक होते जा रहे हैं | यह अपना पन और विश्वास ही तो मनुष्य को बाकी जानवरों से अलग कर रहा है. | तो भाई लोगो अपने जीवन का आनंद लो मजे से जियो | दुश्मनी भी करो तो वह भी एक स्टैण्डर्ड के साथ... बशीर बद्र का एक शेर याद आया अभी की " दुश्मनी जम के करो मगर यह गुंजाईश रखना जब कभी हम दोस्त हो जाए तो शर्मिंदा न हो "
तो भाई लोग दुश्मनी करना छोडो और अपने अन्दर के क्रोध और अहंकार रूपी रावन को मारो, लोगो पर विश्वास करना सीखो | दुनिया आपको अपनी लगने लगेगी जब आप दुनिया को अपना समझने लगेंगे | रिश्तों की क़द्र करना, अच्छे लोगो से दोस्ती बनाए रखने के गुण को अपनाना हमारी एक बहुत बड़ी सामाजिक ज़रुरत है | एक छोटी सी मुस्कराहट आपके लिए चमत्कार कर सकती है.

बस आज का प्रवचन बहुत हुआ... अब देव बाबा आराम करेंगे..

देव बाबा
अक्तूबर ७ २००९

कोई टिप्पणी नहीं: