सोमवार, 12 जुलाई 2010

पानी में भीगी.... मेरी आज की सुबह..

वाह वाह, मस्त मस्त मजा मजा। आज सुबह सुबह का किस्सा सुनिये..... बन्धुओं घरवाली से बतियानें और फ़िर नये नये टीवी में मस्त मस्त शो देखनें में ससुरा रात को लेट हो जाता है ना.... और फ़िर जल्दी उठने का मन नहीं होता है यार..... मगर कुछ इस तरह गुज़री है आज की सुबह..... थोड़ी स्पेसल.... बंधुओ हुआ यह की आज सुबह जब उठे तो देखे... बिस्तर थोडा गीला गीला काहे लग रहा है.... ई गीला कैसे हुआ.... मामले की छानबीन की गयी तो मालूम चला की बगल के कमरे की छत कुछ यूँ टपक रही है....
लो देखो, बरखा रानी कौन से दरवाज़े से मेरे घर में आईं।
(टपकती बूंदे दिखाई दे रहीं है ना..... मोबाईल से हैंची है यह तस्वीर...)
उ.. आ आ... ह्म्म्मम्म सबको हमी से बैर है.... अच्छे से कोई सोने भी नहीं देता है..... मगर लो जब उनींदे से जगाओगे तो फिर कविता बनेगी.... अब बन गयी है तो फिर झेलो इसको.....

बारिश की बूंदो में लिपटी
हल्की ठंड से चादर में सिमटी
आज की सुबह...

किसी की याद के मोती
कभी कानों में कुछ कहती...
आज की सुबह

छत से पानी टिप टिप करती...
बारिश मेरे घर में घुसती...
कुछ इस तरह से बीती है....

आज की सुबह

अभी तैयार होने जा रहा हूँ..... क्या करू भाई.... नींद भी आ रही है और फिर सवेरा हो गया है तो फिर बाकी के काम भी तो करने है ना..... फिर ऑफिस भी तो जाना है ना... तो भाई देव बाबा.... उठिए और लग जाइये काम पे....

-देव

11 टिप्‍पणियां:

राम त्यागी ने कहा…

ये टीवी का दहेज वाला है क्या :)

यार छत से पानी को टपकना तो बंद करना पड़ेगा ऑफिस जाने से पहले :)

शिवम् मिश्रा ने कहा…

काहे झूट बोलते हो देव बाबु ............. शर्म नहीं आती इतना बड़े हो गए हो ...........बाबा से बाबु हो गए ............बिस्तर अभी भी गिला करते हो !!

राम राम राम राम !!

और यह वाली कविता ऐसे ही छोड़ दिए ...........समर्पित नहीं किये ..........बहुरिया को !!

Dev K Jha ने कहा…

दहेज का नहीं है, अपनें पईसे से खरीदा हुआ है। अभी परसो ही तो ले के आएं है। दहेज में बस बहुरिया मिली है और उस अनमोल चीज़ के बाद फ़िर क्या....

जो चीज़ समाज को डुबोए दे रही हो, उसे दूर ही से प्रणाम....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

इसे कहते हैं पॉसिटिव एटीट्यूड। घर टपकने में कविता खोद लाये।

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अच्छा हो गया किलि्यर कर दिए,
नया टीवी सुनकर हम भी यही समझे थे।:)

दीपक 'मशाल' ने कहा…

घर के अन्दर तक आयीं हैं जगाने.. तो काहे नहीं धन्यवाद करते बरखा रानी का.. बताइए ज़रा???

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

चूती हुयी छत पर कविता... बढिया है...

ब्लॉ.ललित शर्मा ने कहा…

अच्छी पोस्ट,बेहतरीन रचना

यह पोस्ट ब्लाग4वार्ता पर भी है

संजय भास्‍कर ने कहा…

are wahhhhhh
kya baat hai...
kahin se bhi kavita bana lete ho dev babu.........


sanjay bhaskar

Rajeev Nandan Dwivedi kahdoji ने कहा…

बहुत सही जगाये कोई और.....और कविता झेलें हम !!

amitjha ने कहा…

wah bhai kya kavita hai....
situation interesting hai...yahan kavita ki kalpana...wah...!!!