सोमवार, 24 मई 2010

मैं और मेरी तनहाई...

कुछ पल फ़ुरसत के...






आज फ़िर से मिले
कुछ पल फ़ुरसत के
कुछ पल अपनें लिए
कुछ अपनी कलम के लिए
कुछ पुरानी यादों से
दो चार होती हुई
कुछ पुरानें दोस्तों से
गप्पे लडाती
अपनें बचपन से
कुछ पल चुराती
वाह क्या खूब गुज़री
यह सुबह
वाह क्या खूब मिली
मैं और मेरी तनहाई...
मैं और मेरी तनहाई...


-देव

11 टिप्‍पणियां:

nilesh mathur ने कहा…

वाह! बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

M VERMA ने कहा…

आपकी आपकी तन्हाई से सुन्दर मिलन दास्तान काफी अच्छी लगी

राम त्यागी ने कहा…

अपने लिए टाइम निकलना बहुत जरूरी है ...टेडी भी खुश दिख रहा है देव के साथ :)

पंकज मिश्रा ने कहा…

देव जी यह भी बताइए कि क्या आप और आपकी तन्हाई कभी कभी कुछ बातें भी करती हैं। अगर हां तो क्या बातें करती हैं। अगर नहीं तो क्यों नहीं।
http://udbhavna.blogspot.com/

Ashish (Ashu) ने कहा…

अरे वाह वाकई दिल प्रसन्न हो गया अच्छा लगा

Udan Tashtari ने कहा…

तन्हाई से मिलन देव बाबू का..बहुत बढ़िया!

बेनामी ने कहा…

तनहाई सबसे अच्छी दोस्त होती है, सुन्दर कविता

शिवम् मिश्रा ने कहा…

देव बाबु और तन्हाई ...............यह बात कुछ हज़म नहीं हुयी !!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

देव बाबु और तन्हाई ...............यह बात कुछ हज़म नहीं हुयी !!

Ra ने कहा…

तन्हाई से दोस्ती कर लो ,,,,खुद- ब- खुद दूर हो जायेगी ...बढ़िया रचना

स्वाति ने कहा…

कुछ पल अपनें लिए
कुछ अपनी कलम के लिए
कुछ पुरानी यादों से दो चार होती हुई
सुन्दर कविता...