सोमवार, 26 अप्रैल 2010

आरज़ू...

कुछ इधर उधर की.... ऐसे ही उठा लिया है आज....





कोई पुरानी याद मेरा रास्ता रोककर मुझसे कहती है
इतनी जलती धुप में यूँ कब तक बैठोगे
आओ चल के बीते दिनों की छाव में बैठे
उस लम्हे की बात करे जिसमे कोई फूल खिला था
उस लम्हे की बात करे जिसमे किसी की आवाज की चांदी खनक उठी थी
उस लम्हे की बात करे जिसमे किसी की नजरो के मोती बरसे थे
कोई पुरानी याद मेरा रास्ता रोके....

सच तो ये है कसूर अपना है
चांद को छूने की तमन्ना की
आसमाँ को जमीन पर माँगा
चाहा कि पत्थरों पे फूल खिले
काँटों में की तलाश खुशबू की
आरजू की आग ठंडक दे
बर्फ में ढूँढते रहे गर्मी
ख्वाब जो देखा चाहा कि सच हों जाए
इसकी हमको सजा तो मिलनी ही थी
सच तो ये है कि कसूर अपना है......

-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-=-

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

ख्वाब जो देखा चाहा कि सच हों जाए
इसकी हमको सजा तो मिलनी ही थी
सच तो ये है कि कसूर अपना है..

-बहुत सच और सुन्दर!!

बेहतरीन रचना.

कविता रावत ने कहा…

ख्वाब जो देखा चाहा कि सच हों जाए
इसकी हमको सजा तो मिलनी ही थी
सच तो ये है कि कसूर अपना है......
..... kahin na kahin kami rahti hai aur sabhi ख्वाब pure ho jay. phir to jindagi mein shikwe-gilwe kahan....
Manobhavon ki sundar prastuti....
Shubhkamnayne