रविवार, 29 नवंबर 2009

अथ श्री गाली पुराण

अथ श्री गाली पुराण,
बंधुओं वैसे तो मैं एक शरीफ इंसान हूँ मगर आज कल अक्लमंदों की दुनिया में कुछ अजीब सा महसूस करने लगा हूँ... यह अक्लमंद मुझे भी अक्लमंद बनाने की हर संभव कोशिस कर रहे हैं| वैसे गलिओं और अप-शब्दों की भी अपनी ही एक परिभाषा और विज्ञानं है | हिंदुस्तान में बिना गलियां दिए आपकी महत्ता सिद्ध नहीं हो सकती, एक सीन सोचिये चौराहे पे खड़ा दरोगा और पन-वाडी के बीच का वार्तालाप | दरोगा ना सिर्फ मुफ्त में पान खायेगा बल्कि दो गालिआं सुना के कान के नीचे दो लगा भी सकता है | बस जितना ऊँचा दरोगा का ओहदा उतना ही ऊँचा गालिओं का लेवल | एक और सीन देखिये... बॉस और जूनियर दोनों एक दुसरे को मन ही मन गालिआं देंगे मगर सामने एकदम अच्छे से व्यवहार करेंगे |

जय हो भैया

वैसे ऐसा नहीं है की गालिआं केवल हमारे यहाँ ही दी और ली जाती हैं... भाई दुनिया में बहुत से विकसित देश भी हैं जो हमसे भी उच्च स्तर की गालियाँ दे और ले सकते हैं | उनका स्तर तो भैया बस भगवान् ही जाने हम तो अपनी जुबान गन्दी नहीं करेंगे... हिप्पोक्रेट हैं ना | अभी भैया तरक्की के लिए गालियाँ देना और लेना सीखना पड़ेगा | कभी कभार गालियाँ देना भरी पड़ सकता है तो याद रखिये राजू भैया की उच्च केटेगरी की शिक्षा की "ऐसी वाणी बोलिए, जम के झगडा होए , पर उनसे ना बोलिए जो आपसे तगड़ा होए" समझ गए हों तो जाइये और गालियाँ देने की प्रक्टिस करिए भाई और तरक्की के मार्ग पर एक कदम और बढाइये...

-देव
२९ नवम्बर २००९

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